नफरत की जंग में हुई मुहब्बत की जीत

भारतीय रंगमंच में पारसी शैली के सुविख्यात नाटक “यहूदी की लड़की” का मंचन

बरेली। श्रीराम मूर्ति स्मारक रिद्धिमा में चल रहे तीसरे थिएटर फेस्टिवल “इंद्रधनुष” के छठवें दिन सोमवार को देहरादून के एकलव्य थियेटर की ओर से नाटक “यहूदी की लड़की” का मंचन हुआ। इसमें मुख्य अतिथि के रूप में खानकाहे नियाजिया के प्रबंधक शब्बू मियां मौजूद रहे। श्रीराम मूर्ति स्मारक ट्रस्ट के संस्थापक व चेयरमैन देव मूर्ति, सुभाष मेहरा और डा.अनुज कुमार के साथ उन्होंने दीप प्रज्वलन कर नाटक “यहूदी की लड़की” के मंचन का शुभारंभ किया।

नफरत की जंग में हुई मुहब्बत की जीत
नफरत की जंग में हुई मुहब्बत की जीत

आगा हश्र कश्मीरी कृत एवं अखिलेश नारायण निर्देशित नाटक “यहूदी की लड़की” भारतीय रंगमंच में पारसी शैली का सुविख्यात नाटक है। जब-जब पारसी थिएटर का ज़िक्र होता है, तब आगा हश्र का नाम स्वतः ही सम्मान के साथ लिया जाता है। “यहूदी की लड़की” नाटक में यहूदियों पर होने वाले रोमनों के अत्याचार को उभारकर धर्मान्धतावाद, सत्ता के अहंकार तथा मानवीय भावना की विजय का मंचन किया गया है। नाटक की कथावस्तु एक यहूदी लड़की राहिल की है, जो अपने प्रेमी मारकस से प्रेम करती है। किंतु रोमन शहजादा होने के नाते मारकस उसे धोखा दे रहा है। क्योंकि रोमन और यहूदी दोनों ही एक दूसरे से नफरत करते हैं। वो राहिल को चाहता तो है, लेकिन उसके लिए अपना धर्म बदलने से लाचार है।

नफरत की जंग में हुई मुहब्बत की जीत
नफरत की जंग में हुई मुहब्बत की जीत

मारकस राहिल को छोड़कर रोमन शहजादी डैसिया से शादी करने को तैयार हो जाता है। शादी के मौके पर पहुंच कर राहिल शादी को रुकवाती है और बादशाह से इंसाफ मांगती है। बादशाह शहजादे को कठघरे में खड़ा कर इंसाफ को अहमियत देता है। फैसला सुनाने के लिए सबको मजहबी अदालत में बुलवाया जाता है। रोमन शहजादी डैसिया, राहिल के पास अपने प्यार मारकस की जान की भीख मांगने जाती है। वो उसे किसी तरह मारकस की जान बख्श देने के लिये राजी कर लेती है।

नफरत की जंग में हुई मुहब्बत की जीत
नफरत की जंग में हुई मुहब्बत की जीत

मजहबी अदालत में राहिल अपना बयान वापस ले लेती है। बादशाह राहिल के बाप अजरा और राहिल को एक रोमन शहजादे पर झूठा इल्ज़ाम लगाने के जुर्म में जिंदा आग में जलाने की सजा सुना कर मुकदमा खारिज करते हैं। ब्रुटस जो कि रोमन कौम का मजहबी पेशवा है, वो राहिल और अजरा को अपना मजहब छोड़ कर रोमन बनने पर जान बख्श देने का प्रलोभन देता है। अजरा, ब्रुटस की बात को नकार कर उसके कर्मों की याद दिलाता है। उसे बताता है कि 20 साल पहले तेरी बीवी और बच्ची जो आग में जलकर मरे थे, उस आग से तेरी बच्ची बच गयी थी। ये राहिल ही वह बच्ची है। जिसे मैंने अपनी औलाद बनाकर पाला। तुमने मेरी कौम के साथ क्या-क्या सुलूक किए, लेकिन देख जालिम मैंने तेरे खून को संभाला। ब्रुटस ये बात सुनकर शर्मिंदा होता है, और अपने गुनाहों के लिए मांफी मांगता है। अंत में खुद शहजादी डैसिया राहिल की शादी मारकस से करवा देती है। नाटक में जागृति कोठारी (राहिल), सुमित गौड़ (ब्रुटस), हेमलता पांडे (डैशिया), जय सिंह रावत (मारकस), प्रियंका अनुरागी (जोना), महेश नारायण (बादशाह) ने अपनी भूमिकाओं में शानदार अभिनय किया। नाटक में संगीत निर्देशन शिवम थपलियाल ने दिया। इस मौके पर श्रीराम मूर्ति स्मारक ट्रस्टी आशा मूर्ति, उषा गुप्ता, डा. रजनी अग्रवाल, डा. आरती गुप्ता, डा.रीता शर्मा, अनंत वीर सिंह, दर्शना सेठी सहित शहर के गण्यमान्य लोग मौजूद रहे।