” क्रान्ति तीर्थ श्रंखला की संकल्पना “

क्रांति तीर्थ श्रृंखला के 28 अक्टूबर को बलिदानियों की जन्मस्थली की पावन रज से भरे कलश का अतिथियों द्वारा पूजन किया जाएगा ।

बरेली । हमारे देश की स्वतन्त्रता में देश के क्रांतिकारियों ने बहुत महत्वपूर्ण निभाई। आंकडे बताते हैं कि छः लाख से अधिक नौजवान क्रांतिकारियों ने भारत माता को परतंत्रता की बेड़ियों से मुक्त कराने के लिए हंसते – हंसते अपने प्राणों को न्योछावर कर दिया । देश की स्वतन्त्रता के बाद हमारे कर्णधारों एवं इतिहासकारों ने इन क्रांतिकारियों के साथ न्याय नहीं किया ।उन्हे उनके बलिदान एवं संघर्षो के अनुरूप मान -सम्मान नहीं मिला । क्रांतितीर्थ श्रंखला का उद्देश्य शहीदों के बलिदानों से हमारी नई पीढी को अवगत कराना है ।
स्वतन्त्रता प्राप्ति के 75 वर्ष पूर्ण करने के उपरान्त वर्ष पर्यन्त क्रान्ति-तीर्थ-योजना के अन्तर्गत संस्कृति विभाग-भारत सरकार एवं अखिल भारतीय साहित्य परिषद, बृज प्रान्त द्वारा विभिन्न जनपदों के अज्ञात , अल्पज्ञात एवं ख्यातिप्राप्त क्रान्तिकारियों की जन्मस्थली एवं कर्मभूमि पर उनके परिजनों के सानिध्य में पुण्यभूमि की मिट्टी का संग्रह एक कलश में करके विधिवत उन कलशों को प्रान्त मुख्यालय पर लाया गया। क्रांति तीर्थ श्रृंखला के 28 अक्टूबर को बलिदानियों की जन्मस्थली की पावन रज से भरे कलश का अतिथियों द्वारा पूजन किया जाएगा । भारतीय स्वाधीनता संग्राम में अपना सर्वस्व बलिदान कर देने वाले ब्रज प्रान्त के उन महान क्रान्तिकारियों के जीवन एवं बलिदानों के सम्बन्ध में विविध कार्यक्रमों तथा छात्रों के मध्य चित्रकला, निबंध लेखन भाषण , गायन एवं कविता पाठ आदि प्रतियोगिताओं का आयोजन कियागया। इसी सन्दर्भ में क्रान्तिवीरों की स्मृति में संगोष्ठी एवं कवि सम्मेलनों का भी आयोजन कर उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की गई।
बृज प्रान्त के शाहजहाँपुर में जन्में तीन प्रमुख क्रान्तिकारी पं. राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खान एवं ठाकुर रोशन सिंह के नाम भारतीय क्रान्ति के इतिहास में प्रमुख हैं। पं. राम प्रसाद बिस्मिल भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन की क्रान्तिकारी धारा के एक प्रमुख सेनानी थे, जिन्हें 30 वर्ष की आयु में 19 दिसम्बर सन् 1927 को ब्रिटिश सरकार ने फाँसी दे दी थी। वे मैनपुरी षडयन्त्र व काकोरी काण्ड जैसी अनेक गतिविधियों में सम्मिलित रहे। बिस्मिल ने हिन्दुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसियेशन नामक क्रान्तिकारी संगठन का गठन कर अंग्रेजी सरकार की नाक में दम कर रखा था।
प्रसिद्ध क्रान्तिकारी अशफाक उल्ला खान भी शाहजहाँपुर के रहने वाले थे। वे बिस्मिल के परममित्र थे। क्रान्तिकारी गतिविधियों में हमेशा बिस्मिल के सहयोगी रहे अशफाक उल्ला खान को भी 19 दिसम्बर 1927 को काकोरी षडयन्त्र केस में प्रमुख भूमिका निभाने के कारण फाँसी दे दी गयी थी।
ठाकुर रोशन सिंह का जन्म भी शाहजहाँपुर जिले में हुआ था। वे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक प्रमुख क्रान्तिवीर थे। असहयोग आन्दोलन के दौरान उत्तर प्रदेश के बरेली में हुए गोलीकाण्ड में सजा काटकर जैसे ही वे शान्तिपूर्ण जीवन बिताने घर आये कि फिर से वे हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसियेशन में सम्मिलित हो गये। ‘काकोरी एक्शन’ काण्ड में प्रमुख भूमिका होने के कारण रोशन सिंह को भी अंग्रेज सरकार द्वारा फाँसी की सजा दी गई थी।
आगरा जिले के बटेश्वर में जन्मे प्रसिद्ध क्रान्तिकारी गेंदालाल दीक्षित के साहसिक कारनामों ने ब्रिटिश सरकार की जड़ें हिलाकर रख दी थीं। गेंदालाल दीक्षित क्रान्तिकारी दल ‘मातृवेदी’ के कमाण्डर इन चीफ थे। उन्होंने एक समय देश के अलग-अलग क्षेत्रों में काम कर रहे क्रान्तिकारियों यथा-रास बिहारी बोस, विष्णु गणेश पिंगले, करतार सिंह सराभा, शचीन्द्रनाथ सान्याल, प्रताप सिंह बारहट, वाद्या जतिन आदि के साथ मिलकर ब्रिटिश सत्ता के विरुद्ध उत्तर भारत में सशस्त्र क्रान्ति की पूरी तैयारी कर ली थी, लेकिन अपने ही एक साथी की गद्दारी के कारण उनकी सारी योजना पर पानी फिर गया और अनेक क्रान्तिकारी अंग्रेज सरकार के विरुद्ध बगावत करने के आरोप में फाँसी पर लटका दिये गये, सैकड़ों को कालापानी की सजा दी गयी तथा अनेक क्रान्तिकारियों को यातनागृहों में कठोर कारावास दिया गया। मात्र 30 वर्ष की उम्र में ही क्षयरोग से ग्रसित होकर उनकी मृत्यु हो गयी थी।
बृज प्रान्त के इसके अतिरिक्त अन्य अल्पज्ञात क्रान्तिकारियों ने भी भारतमाता के चरणों में अपने प्राण अर्पित कर नवजवानों को प्रेरणा दी थी। उनमें जिला एटा के सोरों कस्बे में जन्मे चेतराम जाटव का नाम स्मरणीय है। चेतराम ने सरकारी दफ्तरों में जमकर लूटपाट की थी। अंग्रेजों द्वारा क्रान्तिकारियों का काफी दमन करने के बावजूद भी जब स्थिति नियन्त्रण में नहीं आई तो अंग्रेज अधिकारी बदायूँ भाग गये थे। बाद में अन्य जिलों से सेना बुलाकर सोरों पर अंग्रेजों ने पुनः अधिकार कर क्रान्तिकारियों को एक-एक कर पकड़ लिया और एक पेड़ पर लटकाकर फाँसी दी थी।
क्रान्तिकारियों की इसी शृंखला में राया जनपद मथुरा के राजा देवी सिंह, मैनपुरी के महाराज तेज सिंह, हाथरस के राजा महेन्द्र पताप सिंह, अलीगढ़ के रमेशचन्द्र आर्य आदि प्रमुख क्रान्तिकारी रहे, जिन्होंने अपने देश की स्वाधीनता के लिये अपने प्राणों के भी न्यौछावर करने में देर नहीं लगाई।
आजादी के अमृत महोत्सव में क्रान्ति-तीर्थ-योजना के क्रम में इन क्रान्तिकारियों के प्रति श्रृद्धांजलि अर्पित कर उनके जन्म स्थान पर जाकर उनके परिजनों के सानिध्य में संगोष्ठी आदि करके बृजप्रान्त में एक नई चेतना का संचार हुआ है। पुनश्च उन अमर क्रान्तिकारियों के चरणों में नमन करते हुए देश के प्रति किये गये उनके बलिदान के प्रति मैं कृतज्ञता ज्ञापित करता हूँ।