लखनऊ:लंबे इंतजार के बाद उत्तर प्रदेश भाजपा को नया नेतृत्व मिल गया है। महाराजगंज से सात बार के सांसद और केंद्रीय मंत्री पंकज चौधरी को प्रदेश भाजपा की कमान मिली है। राजधानी लखनऊ में रविवार को डॉ, राम मनोहर लोहिया राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय के सभागार में ‘मेगा इवेंट’ का आयोजन किया गया। इसमें केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की मौजूदगी में पंकज के नाम की आधिकारिक घोषणा की गई।नाम का एलान होते ही समर्थकों में खुशी की तहर दौड़ गई। परिसर नारों से गूंजने लगा। खासतौर पर महाराजगंज से आए पंकज चौधरी के समर्थकों में अलग ही उत्साह दिखा। कार्यक्रम में मौजूद नेताओं ने पंकज को नई जिम्मेदारी की बधाई दी। इस मौके पर केंद्रीय मंत्री बीएल पीयूष गोयल, केशव पाठक, के. लक्ष्मण, अरुण सिंह, राधा मोहन अग्रवाल, लक्ष्मीकांत बाजपेयी, रमापति राम त्रिपाठी, भूपेंद्र चौधरी, केंद्रीय मंत्री बीएल वर्मा और डिप्टी सीएम केशव मौर्य मंच पर मौजूद रहे।किसी और ने नहीं किया था नामांकन
इससे पहले शनिवार को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और केंद्रीय पर्यवेक्षक विनोद तावड़े व प्रदेश भाजपा अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी की मौजूदगी में पंकज ने भाजपा के प्रदेश मुख्यालय में नामांकन दाखिल किया। प्रदेश अध्यक्ष पद के लिए चौधरी के अलावा किसी और ने नामांकन नहीं किया है। इसलिए, उनका प्रदेश अध्यक्ष चुना जाना पहले ही तय हो गया था। बस आधिकारिक एलान बाकी था।
पीडीए समीकरण में सेंध लगाने की कोशिश
कई महीनों के मंथन के बाद भाजपा ने पूर्वांचल के कद्दावर नेता और महराजगंज से सात बार के सांसद व केंद्रीय मंत्री पंकज चौधरी पर दांव लगाया है। इसके पीछे कई सियासी मायने हैं। पंकज चौधरी को प्रदेश अध्यक्ष की कमान देकर पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने 2027 के विधानसभा चुनाव के लिए पिछड़ों को साधने के साथ ही विपक्ष के पीडीए समीकरण में सेंध लगाने की कोशिश की है। यही नहीं, भाजपा ने पंकज चौधरी के सहारे अपने परंपरागत कुर्मी वोट को भी साधने का प्रयास किया है। साथ ही कार्यकर्ताओं को यह भी संदेश दिया है कि भाजपा अपने मूल काडर की कीमत को भूलती नहीं है।
चौधरी के सामने ये होंगी चुनौतियां
भाजपा के नए अध्यक्ष पंकज चौधरी के सामने अगले साल होने वाले पंचायत चुनाव और 2027 के विधानसभा चुनाव में पिछड़े वोट बैंक को साधने की प्रमुख चुनौती होगी। वहीं पिछले कई साल से विभिन्न संस्थाओं में मनोनयन का इंतजार कर रहे नाखुश कार्यकर्ताओं की नाराजगी दूर करना भी बड़ी चुनौती होगी।
इसके अलावा थाना, पुलिस और अधिकारियों के यहां सुनवाई न होने की शिकायत को दूर करने, सरकार के साथ संतुलन बनाए रखने जैसे तमाम ऐसे मुद्दे हैं, जिसे सुलझाना भी चौधरी के लिए किसी परीक्षा से कम नहीं है। यह भी माना जा रहा है कि सात बार सांसद और केंद्रीय मंत्री होने के बावजूद राज्य स्तर की राजनीति से तालमेल बिठाना भी चौधरी के सांगठनिक कौशल क्षमता की परख करेगा।
कुर्मी वोट बैंक को भाजपा के पाले में लाना बड़ी चुनौती
दरअसल, यादवों के बाद पिछड़ों में सबसे अधिक प्रभावशाली रही कुर्मी बिरादरी भाजपा का कोर वोट बैंक रही है। लेकिन, पार्टी में तमाम कुर्मी नेताओं के होने और अपना दल (एस) के साथ होने के बाद भी 2024 के लोकसभा चुनाव में सपा कुर्मी वोट बैंक में भारी सेंधमारी करने में सफल रही है।
इस कारण भाजपा को भारी कीमत चुकानी पड़ी थी। 2019 में 62 लोकसभा सीट जीतने वाली भाजपा 2024 में 36 सीटों पर ही जीत हासिल कर पाई। तभी से पार्टी नेतृत्व इस नुकसान की भरपाई के लिए एक ऐसे चेहरे को तलाश रही थी, जो कुर्मी वोट बैंक को फिर से अपने पाले में कर पाए।
कुर्मी कार्ड से 2027 की बिसात
पंकज चौधरी पर दांव लगाने की एक खास वजह यह भी मानी जा रही है कि मौजूदा सियासी परिदृश्य में यूपी में कुर्मी चेहरे के तौर पर मूल काडर के सिर्फ दो ही बड़े कुर्मी नेता हैं। इनमें एक खुद पंकज चौधरी और दूसरे जलशक्ति मंत्री स्वतंत्रदेव सिंह। हालांकि प्रदेश सरकार में वैसे तो कई अन्य कुर्मी नेता मंत्री और विधायक हैं, जिनमें से अधिकांश या तो दूसरे दलों से आए हैं या मूल काडर का होने के बावजूद कुर्मी समाज में उतने प्रभावी नहीं हैं, जितने पंकज चौधरी।
इस तरह से बने भाजपा अध्यक्ष
1. माधो प्रसाद त्रिपाठी- पार्टी बनने के बाद यह पहले भाजपा अध्यक्ष रहे। 1980 में बीजेपी के अध्यक्ष बने माधो प्रसाद 1984 तक इस पद पर बने रहे। माधव प्रसाद लोकसभा सदस्य भी रहे।
2.कल्याण सिंहः माधव प्रसाद त्रिपाठी के बाद कल्याण सिंह पार्टी अध्यक्ष बने। वह छह वर्षों तक पार्टी के अध्यक्ष रहे। कल्याण सिंह दो बार यूपी के मुख्यमंत्री भी रहे। कल्याण बीच में कुछ वर्षों के लिए भाजपा से अलग हुए। 2014 में उनकी पार्टी में फिर से वापसी हुई।
3.राजेंद्र कुमार गुप्ता- कल्याण सिंह के बाद राजेंद्र कुमार गुप्ता एक साल के लिए पार्टी अध्यक्ष रहे।
4.कलराज मिश्रः राजेंद्र गुप्ता के बाद कलराज मिश्रा को पार्टी को जिम्मेदारी सौंपी। वह सन् 1991 से 1997 तक अध्यक्ष पद रहे। वह अब तक सबसे लंबे समय तक पार्टी अध्यक्ष रहे।
5.राजनाथ सिंहः कलराज मिश्रा के बाद बीजेपी ने राजनाथ सिंह पर भरोसा जताया। वह करीब तीन वर्षों के लिए पार्टी के मुखिया रहे। मार्च 1997 से जनवरी 2000 तक यूपी भाजपा प्रमुख रहे। बाद में राजनाथ सिंह सन 2000 से 2002 तक करीब दो वर्षो के लिए मुख्यमंत्री रहे।
6.ओमप्रकाश सिंहः राजनाथ सिंह के बाद ओम प्रकाश सिंह यूपी भाजपा के प्रमुख बने। वह जनवरी 2000 से अगस्त 2000 तक सिर्फ 7 महीने के लिए अध्यक्ष रहे। वह कुर्मी समाज से आते हैं।
7.फिर से कलराज मिश्रः ओम प्रकाश के बाद एक बार फिर से कलराज मिश्रा के हाथ में कमान आई। वह 2000 से 2002 तक पार्टी के प्रमुख रहे।