लखनऊ:पारिवारिक संपत्तियों के बंटवारे का अधिकतम शुल्क 5 हजार रुपये करने का फैसला न केवल अदालतों का बोझ कम करेगा बल्कि परिवारों में सौहार्द्र का माहौल भी बनाएगा। पहले यह शुल्क संपत्ति के बाजार मूल्य का 5% तक होता था। विभाग का मानना है कि इस फैसले से संपत्ति बंटवारे के करीब 2.25 लाख विवाद मिनटों में खत्म हो जाएंगे। कानूनी सलाह आदि पर होने खर्च में 3800 करोड़ रुपये तक की बचत होगी और स्टांप राजस्व के रूप में 500 करोड़ तक की वृद्धि होगी। अभी इस मद में कोई राजस्व नहीं मिलता।
प्रदेश में फिलहाल राजस्व अदालतों में लगभग 26,866 भूमि व संपत्ति संबंधी विवाद लंबित हैं, जिनमें से बड़ी संख्या पारिवारिक संपत्तियों के बंटवारे से जुड़ी है। इसके अलावा करीब दो लाख मामले अलग-अलग रूप में चल रहे हैं। विधि विशेषज्ञों का मानना है कि शुल्क घटने से कम-आय वर्ग के लोग भी अब संपत्ति विभाजन का पंजीकरण कराएंगे, जिससे लंबित मामलों की संख्या में उल्लेखनीय कमी आएगी। अनुमान है कि 70 फीसदी विवाद एक वर्ष में खत्म हो जाएंगे।
संपत्ति विवाद पुलिस थानों और तहसील स्तर पर झगड़ों का कारण बनते हैं। अपंजीकृत बंटवारे से झगड़े लंबा खिंचते थे। अब शुल्क घटने से लोग सीधे पंजीकृत विभाजन की ओर बढ़ेंगे, जिससे पुलिस और तहसील स्टाफ पर भार कम होगा। पहले महंगे शुल्क के कारण लोग बंटवारे से बचते थे, लेकिन अब केवल ₹5,000 की सीमा तय होने से बड़ी संख्या में लोग आगे आएंगे। रजिस्ट्री विभाग का मानना है कि अगर प्रदेश में हर साल औसतन 50,000 पारिवारिक संपत्ति बंटवारे पंजीकृत होते हैं, तो सरकार को इससे कम से कम 500 करोड़ तक की अतिरिक्त आय हो सकती है। पुराने लंबित मामलों के निस्तारण से भी हजारों पंजीकरण होंगे, जिससे शुरुआती वर्षों में राजस्व में और बढ़ोतरी संभव है।
पारिवारिक कलह को खत्म करना मकसद
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के विजन के अ्नुरूप पारिवारिक संपत्ति बंटवारे में न्यूनतम शुल्क की कवायद तीन वर्ष से चल रही थी। इसका सबसे बड़ा मकसद संपत्ति बंटवारे की वजह से परिवारों में होने वाली कलह को खत्म करना है। साथ ही अदालतों में मामले जाने की वजह से संपत्ति का कोई इस्तेमाल सीमित हो जाता है। अब दस हजार की फीस पर दस मिनट पर विवाद हल होगा, जिसका सकारात्मक असर राजस्व पर भी आएगा। -रवीन्द्र जायसवाल, स्टांप एवं पंजीकरण मंत्री (स्वतंत्र प्रभार)