अयोध्या : जिले के मिल्कीपुर विधानसभा सीट पर उपचुनाव को लेकर नामांकन की तैयारी पूरी कर ली गई है. राजनीतिक पार्टियों के प्रत्याशी नामांकन दाखिल करेंगे. इस उप चुनाव में भारतीय जनता पार्टी, समाजवादी पार्टी के अलावा भीम आर्मी भी अपने प्रत्याशी मैदान में उतारेगी. कई निर्दलीय भी ताल ठोंकेंगे. इस सीट के लिए 5 फरवरी को वोटिंग होनी है, जबकि 8 को नतीजे आएंगे. सीट पर सीधी टक्कर भाजपा-सपा में देखने को मिल सकती है.
मिल्कीपुर विधानसभा सीट से भाजपा तीसरी बार जीत के लिए मैदान में उतरेगी. वहीं अन्य पार्टियों की बात की जाए तो इस सीट पर भारतीय कम्युनिष्ट पार्टी ने 4 बार, समाजवादी पार्टी ने 4 बार और भारतीय जनता पार्टी ने 2 बार, बसपा ने 1 बार और कांग्रेस ने भी 1 बार जीत दर्ज की है. सपा और भाजपा दोनों सियासी दल जातीय समीकरण को साधने में जुटे हैं.
भारतीय कम्युनिष्ट पार्टी का भी रहा दबदबा : प्रदेश में चुनावी दौर शुरू होने के बाद पहले तो इस क्षेत्र में कांग्रेस पार्टी प्रभावी रही. साल 1977 से मिल्कीपुर विधानसभा क्षेत्र की सियासी तस्वीर बदलने लगी. भारतीय कम्युनिष्ट पार्टी के कद्दावर नेता मित्रसेन ने यहां से विधानसभा चुनाव में जीत दर्ज की. इसके बाद साल 1980 के चुनाव में एक बार फिर भाकपा से मित्रसेन यादव विधायक बने. साल 1985 में भाकपा से मित्रसेन ने फतह हासिल की यह क्रम कांग्रेस की लहर में साल 1989 में टूट गया. कांग्रेस प्रत्याशी बृजभूषण मणि त्रिपाठी ने मित्रसेन से यह सीट छीनकर कांग्रेस की झोली में डाल दी. इसके बाद फिर राम लहर में एक बार फिर यहां की सियासत की दिशा बदली. साल 1991 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के मथुरा तिवारी ने कांग्रेस से यह सीट छीनकर भाजपा के खाते में डाल दी. फिर वर्ष 1993 के चुनाव में मित्रसेन यादव फिर से हंसिया चुनाव निशान से मैदान में आए और उन्होंने जीत दर्ज की.
इसके बाद सपा का प्रभाव बढ़ा. सपा ने साल 1996 में फिर मित्रसेन को मैदान में उतारा. वह विजयी हुए. वहीं मित्रसेन के सांसद बनने के बाद सपा ने साल 2002 के विधानसभा चुनाव में उनके बेटे आनंदसेन को मैदान में उतारा. आनंदसेन चुनाव जीत विधायक बन गए लेकिन इसके बाद एक बार फिर सेन परिवार ने पाला बदला. सपा से बसपा की ओर चले गए. वर्ष 2007 के विधानसभा चुनाव में आनंदसेन को बसपा ने अपना प्रत्याशी बनाया. जीतकर वह विधायक बन गए.
साल 2022 में पलट गया पासा : इसके बाद आयोग ने नए सिरे से सीटों का परिसीमन कराया. मिल्कीपुर अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित सीट घोषित कर दी गई तो सपा ने तत्कालीन सोहावल विधानसभा क्षेत्र से कई बार विधायक रहे अवधेश प्रसाद को यहां से मैदान में उतारा. सीट से वह जीते भी. साल 2017 के विधानसभा चुनाव में वह अपनी सीट नहीं बचा पाए. पीएम मोदी के पक्ष में चल रही सियासी बयार ने इस सीट को भाजपा के खाते में डाल दिया. गोरखनाथ यहां से भाजपा से विधायक चुने गए. साल 2022 के चुनाव में एक बार फिर पासा पलटा. भाजपा के गोरखनाथ चुनाव में शिकस्त खा गए.
कद्दावर नेताओं की साख फिर दांव पर : एक बार फिर सपा से अवधेश प्रसाद यहां से विधायक चुने गए. अब फिर से सियासी जंग का मैदान सज रहा है. कद्दावर नेताओं की साख फिर दांव पर लग गई है. साख बचाने के लिए जातीय समीकरणों को साधने की कोशिश शुरू कर दी गई. सपा अपने पीडीए के फार्मूले को फिर परीक्षण के लिए चुनावी प्रयोगशाला में आजमाने की तैयारी में है तो भाजपा श्रीराम मंदिर, अयोध्या के विकास और सबका साथ सबका विकास के जरिए पीडीए का काट तैयार कर रही है. दोनों प्रमुख दलों के सियासी सूरमा मैदान मार लेने के लिए सियासत की धार पैनी कर रहे हैं.