प्रयागराज: सपा नेता स्वामी प्रसाद मौर्य को सोमवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट से तगड़ा झटका लगा है। कोर्ट ने स्वामी प्रसाद मौर्य की रामचरितमानस पर विवादास्पद टिप्पणी के लिए उनके खिलाफ दर्ज मामले में आपराधिक कार्रवाई को रद्द करने की याचिका खारिज कर दी है। इसके साथ ही इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि स्वस्थ आलोचना का मतलब यह नहीं है कि ऐसे शब्दों का इस्तेमाल किया जाए जो लोगों को अपराध करने के लिए प्रेरित करें। कोर्ट में कहा गया कि स्वामी प्रसाद मौर्य ने कथित तौर पर रामचरितमानस की दो चौपाइयों को दलितों, आदिवासियों और पिछड़े वर्ग के लोगों के खिलाफ बताते हुए आपत्ति जताई थी। ये चौपाइयों हैं- “ढोल, गंवार, शूद्र, पशु, नारी, सकल ताड़ना के अधिकारी”, “पूजहि बिप्र सील गुन हीना, शूद्र न गुन गन ज्ञान प्रवीना।”
रामचरितमानस के बारे में मौर्य ने कथित तौर पर कहा था कि इसे तुलसीदास ने आत्म-प्रशंसा और अपनी खुशी के लिए लिखा था, लेकिन धर्म के नाम पर दुर्व्यवहार क्यों? दलितों, आदिवासियों, पिछड़ों को गालियां, उनकी जातियों का नामकरण करके उन्हें शूद्र बताया। क्या गाली देना धार्मिक है। कोर्ट ने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि स्वामी प्रसाद मौर्य ने लोगों को दंगा भड़काने के लिए उकसाया। इन कृत्यों के कारण श्रीरामचरितमानस, जिसे एक बड़े वर्ग द्वारा पवित्र पुस्तक माना जाता है, इसकी प्रतियां जलाकर क्षतिग्रस्त की गई।