बस्ती: गुरुवार को साहित्यिक संस्था शब्द सुमन द्वारा कलेक्ट्रेट परिसर में ‘समाज में साहित्यकारों की भूमिका’ विषयक संगोष्ठी का आयोजन वरिष्ठ नागरिक बटुकनाथ शुक्ल की अध्यक्षता और वरिष्ठ कवि डा. रामकृष्ण लाल ‘जगमग’ के संचालन में सम्पन्न हुआ। गोष्ठी को मुख्य अतिथि के रूप में सम्बोधित करते हुये वरिष्ठ चिकित्सक एवं साहित्यकार डा. वीके वर्मा ने कहा कि साहित्यकार आज भी प्रतिबद्ध है। अंधेरी रात चाहे कितनी भी लम्बी क्यों न हो उसका सवेरा जरूर होता है।
समाज में आ रही निरन्तर गिरावट से वह थोड़ा परेशान जरूर है। समय के साथ सामंजस्य बिठाकर वह समाज, युवा और राष्ट्र को जागृत करने की दिशा में अग्रसर है। यही वक्त की मांग है और वर्तमान में साहित्यकार की भूमिका भी। विशिष्ट अतिथि श्याम प्रकाश शर्मा ने कहा कि साहित्यकार का यह पवित्र दायित्व होता है कि वह अपनी सभ्यता, संस्कृति और देश को भटकने न दे। अपनी वाणी द्वारा उसमें नए प्राणों का संचार करे। उसकी चेतना को जागृत एवं सक्रिय रखे। एक साहित्यकार का हृदय, मन, मस्तिष्क वीणा के कोमल तारों की तरह संवेदनशील होता है। जो समय और घटनाओं के हल्की सी छुअन से झंकृत हो उठता है। यह झंकार उसकी कला या साहित्य के रूप में अवतरित हो राष्ट्र या जातियों, संस्कृतियों की अमर धरोहर बन जाया करता है।