सुप्रीम कोर्ट और चुनाव आयोग में छिड़ गई फॉर्म 17C को लेकर बहस, जानिए मामला

Form 17C Lok Sabha Election 2024: लोकसभा चुनाव में वोटिंग को लेकर बीते दिनों सुप्रीम कोर्ट में एक याचिक याचिका दाखिल हुई. जिसके जरिए सुप्रीम कोर्ट से मांग की गई है कि चुनाव आयोग अपनी वेबसाइट पर फॉर्म 17C का स्कैंड कॉपी अपलोड करे. ऐसा इसलिए क्योंकि कई राजनीतिक पार्टियां दावा कर रही है कि चुनाव वाले दिन वोटिंग प्रतिशत कुछ और होता है और अगले हफ्ते कुछ और नजर आता है. कुल मिलाकर राजनीतिक पार्टियां वोटिंग के आंकड़ों में गड़बड़ी का आरोप लगा रही हैं. चलिए जानते हैं कि आखिर आखिर फॉर्म 17C क्या है जिसको लेकर सुप्रीम कोर्ट और चुनाव आयोग में बहस छिड़ गई.

फॉर्म क्या 17C है

कंडक्ट ऑफ इलेक्शन रूल्स 1961 के मुताबिक, दो प्रकार के फॉर्म होते हैं- 17A और दूसरा 17C. दोनों ही फार्म्स में मददाताओं का डेटा होता है. फॉर्म 17A में पोलिंग अफसर वोट डालने आने वाले प्रत्येक मतदाता का डिटेल दर्ज करता है. इसके अलावा 17C में वोटर के टर्नआउट का डेटा भरा जाता है. यहां खास बात ये है कि 17C को वोटिंग की समाप्ति के बाद भरा जाता है. जिसकी एक कॉपी प्रत्येक उम्मीदवार के पोलिंग एजेंट को भी दी जाती है.

इसके अलावा 17C में एक बूथ पर तमाम रजिस्टर्ड वोटर्स और वोट देने वाले वोटर्स का डाटा होता है. जिसके जरिए इस बात की जानकारी हासिल की जाती है कि किसी पोलिंग बूथ पर कितने प्रतिशत वोटिंग हुई. ये डेटा चुनाव आयोग की वोटर टर्नआउट ऐप पर भी उपलब्ध नहीं होता है. फॉर्म 17 C के दो हिस्से हैं. जिसके पहले हिस्से में वोटर टर्नआउट का डेटा भरा जाता है जबकि, दूसरे भाग में काउंटिंग के दिन रिजल्ट भरा जाता है.

क्यों जरूर है फॉर्म 17C?

चुनाव संचालन नियम 1961 के 48 S अनुसार, प्रत्येक बूथ के पोलिंग ऐजेंट की जिम्मेदारी है कि वह ईवीएम में डाले गए हरेक वोट का रिकॉर्ड रखे. प्रत्येक उम्मीदवार का पोलिंग एडेंट इसकी मांग कर सकता है. पोलिंग अधिकारी फॉर्म17C की एक कॉपी पोलिंग एजेंट से दस्तखत लेकर ही देता है. चुनाव आयोग में धांधली और ईवीएम में छेड़छाड़ को रोकने के लिए यह जरूरी माना गया है.