गणतंत्र दिवस पर कवि सम्मेलन, मुशायरा

राजधर्म के सम्मुख ऐसी लाचारी थी, अपने बेटों को भी बेटा कह न सके

बस्ती: गणतंत्र दिवस का पर्व उल्लास के साथ मनाया गया। प्रेस क्लब सभागार में जिला प्रशासन द्वारा आयोजित राष्ट्रीय कवि सम्मेलन, मुशायरे में मुख्य अतिथि के रूप में उप जिलाधिकारी सदर गुलाब चन्द ने कहा कि स्वतंत्रता आन्दोलन के इतिहास में कवि, शायरों की भूमिका महत्वपूर्ण रही है। उन्होने अनेक कवियों की रचनाओं का उद्धरण देते हुये कहा कि गणतंत्र की रक्षा का दायित्व कवि, शायरों का भी है। रचनाकार समाज को जगाने की भूमिका निभाते हैं।

कवि सम्मेलन की अध्यक्षता वरिष्ठ कवि डा. ज्ञानेन्द्र द्विवेदी ‘दीपक’ और संचालन ख्यातिलब्ध कवि डॉ. रामकृष्ण लाल ‘जगमग’ ने किया। सरस्वती वंदना से आरम्भ कवि सम्मेलन में ज्ञानेन्द्र द्विवेदी की रचना ‘ऐ अब्र हमें तू- बार-बार सैलाब की धमकी देता है, हम तो दरिया की छाती पर तरबूज की खेती करते हैं’ को सराहा गया। दिल्ली से पधारे कवि अंकुर शर्मा, विवेक कौटिल्य ने अपनी रचनाओं से कवि सम्मेलन को ऊंचाई प्रदान किया। मिर्जापुर से सिद्धान्त शेखर सिंह ने गीतों से वातावरण को रसमय बना दिया। डॉ. रामकृष्ण लाल ‘जगमग’ ने कुछ यूं कहा- राम पुत्र का हाथ प्यार से गह न सके, भावुकता की धारा में भी बह न सके’ राजधर्म के सम्मुख ऐसी लाचारी थी, अपने बेटों को भी बेटा कह न सके।’ इन पंक्तियों पर श्रोता भावुक हो गये। महेश प्रताप श्रीवास्तव ने ‘महफिल में उनको देखकर दिल भक्क से हुआ’ सुनाकर वाहवाही लूटी, डा. वीके वर्मा ने कुछ यूं कहा, ‘उन शहीदों को करें श्रद्धा सुमन अर्पित, जो अपने देश के लिये कुरबान हो गये’ सुनाकर देश भक्ति का भाव भरा। विनोद उपाध्याय हर्षित की रचना ‘ अदब के लिहाज से खामोश हो गया, वरना आपके सवाल का बेहतर जबाब था, सुनाकर वाहवाही लूटी।