फतेहपुर: जयकारों के बीच भू-विसर्जन, पुलिस-प्रशासन रहा मुस्तैद

नवरात्रि के दौरान स्थापित मूर्तियों का किया गया विसर्जन

आशीष सिंह

फतेहपुर: माँ के जयकारों और भक्ति संगीत के बीच भक्तों ने मूर्तियों का भू विसर्जन किया। इस दौरान पुलिस से लेकर प्रशासनिक अधिकारियों ने अपने दायित्वों का निर्वहन किया। जिले के भिटौरा, असोथर, हुसैनगंज, खागा, थरियांव, ललौली सहित कई स्थानों पर माँ की मूर्तियों का भू विसर्जन किया गया।

जिले में नवरात्रि के दौरान स्थापित मूर्तियों का विसर्जन किया गया। जोकि लगातार तीसरे दिन भी जारी रहा। सदर तहसील के भिटौरा में मूर्ति विसर्जन के लिए बड़ी तैयारियां की गईं थी। तहसीलदार इवेंद्र कुमार और नायब तहसीलदार विजय प्रकाश तिवारी ने प्राथमिक चिकित्सा से लेकर एम्बुलेंस, बैरिकेडिंग, पेयजल, बिजली आपूर्ति की व्यवस्था कराई थी। तो वहीं फतेहपुर नगर पालिका की ओर से पेयजल के टैंकर, जेसीबी और साफ सफाई मुस्तैद रही। यहाँ पर भिटौरा से लेकर हुसैनगंज, मलवाँ, फतेहपुर मुख्यालय, अल्लीपुर सहित कई क्षेत्रों की मूर्तियों का भू विसर्जन किया गया। इसी तरह बिंदकी और खागा तहसील में एसडीएम नंद प्रकाश मौर्या की निगरानी में भू विसर्जन हुआ।

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असोथर में भू विसर्जन, पुलिस ने संभाली कमान

भू विसर्जन को लेकर असोथर थाना क्षेत्र में मूर्ति विसर्जन किया गया। यहाँ पर देईमऊ गांव में यमुना नदी के किनारे भू विसर्जन का स्थान सुनिश्चित किया गया था। ऐसे में यहाँ पर बड़ी संख्या में मूर्ति विसर्जन हुआ। यात्रा के समय भक्त अपने वाहन के आगे नाचते झूमते चल रहे थे। तो वहीं मूर्ति विसर्जन स्थल पर माँ की पूजा अर्चना के बाद मूर्ति विसर्जित की जा रहीं थी। इस दौरान योगेंद्र सिंह, जयनेन्द्र सिंह, बाबा तारा से बबलू सिंह, बउवा सिंह, गढ़ी से आनंद सिंह, मुराइन डेरा से नरसिंह और उनके साथी सहित बड़ी संख्या में लोग मौजूद रहे। तो वहीं यहाँ मौके सुरक्षा व्यवस्था की जिम्मेदारी थानाध्यक्ष प्रमोद मौर्या ने निभाई। उनके साथ थाने से महिला, पुरुष कॉन्स्टेबल मौजूद भी रहे।

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हरनवां में निकली विचित्र विसर्जन यात्रा

मूर्ति विसर्जन के दौरान हरनवां गांव से विचित्र यात्रा निकली। विसर्जन के पूर्व यहाँ के ग्रामीणों ने तरह तरह के रूप बनाकर लोगों का मनोरंजन किया। ये भूत, पिशाच बनकर विसर्जन की सवारी में साथ चल रहे थे। जानकारी करने पर भक्तों ने बताया कि ये सब गांव के प्रतीकात्मक बुराइयां हैं, जिन्हें दशहरे के बाद विसर्जित कर दिया जाता है। मान्यता है कि ऐसा करने से गांव में सुख, समृद्धि आती है।

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