जांजगीर: आंख, नाक, कान, मुंह, हाथ-पैर हर जगह सिर्फ राम-राम का नाम, ये रामनामी समाज के लोग हैं। इनके लिए राम किसी मंदिर में नहीं, किसी मूर्ति में नहीं, बल्कि इनके रोम-रोम में प्रभु श्री राम हैं। शरीर का ऐसा कोई हिस्सा नहीं जहां राम न लिखा हो, कपड़ों पर राम, शॉल पर राम, टोपी पर राम यहां तक कि घर की दीवारों और दरवाजों पर भी केवल एक ही नाम है, राम-राम लिखवाने की परम्परा है। यहां तक कि समाज में मरने के बाद ये अपना शव जलाने की जगह दफनाने की परम्परा हैं, ताकि उनके शरीर पर लिखा राम-राम जल न जाए। वे किसी से मिलते हैं तो एक दूसरे को राम-राम कहकर अभिवादन करते हैं। किसी को पुकारते भी हैं तो केवल राम-राम बोलकर, इनके लिए बस राम नाम ही पर्याप्त है।