ज्ञानवापी में पूजा करने से रोकने पर सुप्रीम कोर्ट का इनकार, ओवैसी ने याद दिलाया वर्शिप एक्ट

नई दिल्ली: एआईएमआईएम प्रमुख और सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि पूजा स्थल अधिनियम भारतीय संविधान के तहत धर्मनिरपेक्षता के प्रति हमारी प्रतिबद्धता को लागू करने के लिए गैर-अपमानजनक दायित्व लगाता है। नॉन-रेट्रोग्रेशन (गैर-प्रतिगमन) मौलिक संवैधानिक सिद्धांतों की एक मूलभूत विशेषता है, जिसमें धर्मनिरपेक्षता एक मुख्य घटक है। ऐसे में पूजा स्थल अधिनियम एक विधायी हस्तक्षेप है जो हमारे धर्मनिरपेक्ष मूल्यों की एक अनिवार्य विशेषता के रूप में गैर-प्रतिगमन को संरक्षित करता है। मैं न्यायालय को अपनी ही मिसाल याद दिलाने के लिए बाध्य हूं।

एआईएमआईएम चीफ का यह पोस्ट ऐसे वक्त पर आया, जब सुप्रीम कोर्ट ने ज्ञानवापी मस्जिद के दक्षिणी तहखाने में हिंदू पक्ष के पूजा करने पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने इस दौरान कहा कि 31 जनवरी के आदेश के चलते नमाज प्रभावित नहीं हुई है। सर्वोच्च अदालत ने इस दौरान मसाजिद इंतजामिया कमेटी की याचिका पर काशी विश्वनाथ मंदिर न्यास को नोटिस जारी करके जवाब मांगा और वाराणसी के ज्ञानवापी परिसर में नमाज अदा करने को लेकर यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया। मामले में अगली सुनवाई अब जुलाई के तीसरे सप्ताह में होगी।

मसाजिद इंतजामिया कमेटी की नई याचिका पर सुनवाई

सुप्रीम कोर्ट ज्ञानवापी मसाजिद इंतजामिया कमेटी की नई याचिका पर सुनवाई कर रहा है, जिसमें इलाहाबाद हाई कोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी गई जिसमें मस्जिद के दक्षिणी तहखाने में हिंदू पक्ष को पूजा करने की अनुमति देने से जुड़े अधीनस्थ अदालत के फैसले को बरकरार रखा गया था। चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच ने पुजारी शैलेंद्र कुमार पाठक व्यास से भी मसाजिद कमेटी की याचिका पर 30 अप्रैल तक जवाब दाखिल करने को कहा था। शीर्ष अदालत की बेंच में न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा भी हैं, जो कि ज्ञानवापी मस्जिद का प्रबंधन करने वाली मसाजिद इंतजामिया कमेटी की याचिका पर सुनवाई कर रही है।

इससे पहले हाईकोर्ट ने 26 फरवरी को कमेटी की उस अर्जी को खारिज कर दिया था, जिसमें 31 जनवरी को जिला अदालत की ओर से तहखाने में हिंदू पक्ष को पूजा-पाठ करने की अनुमति दी गई थी। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मसाजिद इंतजामिया कमेटी की याचिका को खारिज करते हुए टिप्पणी की थी कि उत्तर प्रदेश सरकार ने 1993 में ‘व्यास जी के तहखाने’ में पूजा रोकने का फैसला किया। अदालत ने कहा कि ज्ञानवापी के दक्षिणी तहखाने में पूजा पर रोक का फैसला ‘अवैध’ था।