लखनऊ। बिजली
की दरों के निर्धारण मामले में कंपनियों के ऊपर उपभोक्ता परिषद ने गंभीर आरोप लगाया
है। परिषद ने नियामक आयोग में याचिका दायर करते हुए कहा है कि लोकहित के मामलों में
बिजली कंपनियां सटीक जवाब नहीं दे रहीं हैं। ऐसे में कंपनियां जब तब जवाब नहीं देती
हैं, तब तक टैरिफ का निर्धारण नहीं किया जाए। एक करोड़ लाइफलाइन गरीब विद्युत उपभोक्ताओं
से ज्यादा वसूली किये जाने के मामले में पावर कारपोरेशन ने कहा है कि उनकी आईटी विंग
इस मामले को देख रही है। ऐसे में सहज अंदाजा लगाया जा सकता है कि बिजली कंपनियां उपभोक्ताओं
के हितों को लेकर कितना चिंतित हैं।
उपभोक्ता
परिषद अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा ने बताया कि बिजली दर पर सुनवाई के बाद राज्य सलाहकार
समिति की बैठक में लिए गए निर्णय को विद्युत नियामक आयोग बिजली दर को अंतिम रूप देने
में लगा है। लेकिन वहीं प्रदेश के विद्युत उपभोक्ताओं व उपभोक्ता परिषद द्वारा दाखिल
की गई आपत्तियों पर विद्युत नियामक आयोग द्वारा पावर कारपोरेशन और बिजली कंपनियों से
जो रिपोर्ट मांगी गई थी, उस पर बिजली कंपनियां गोलमोल जवाब दे रहीं हैं। यहां तक कि
उपभोक्ता परिषद की अनेकों गंभीर जनहित की आपत्तियों पर बिजली कंपनियों ने विद्युत नियामक
आयोग को जवाब तक नहीं दिया है। जिसके विरोध में उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत उपभोक्ता
परिषद के अध्यक्ष व राज्य सलाहकार समिति के सदस्य अवधेश कुमार वर्मा ने शुक्रवार को
विद्युत नियामक आयोग में एक लोक महत्व प्रत्यावेदन दाखिल करते हुए विद्युत नियामक आयोग
से मांग उठाई है कि विद्युत अधिनियम 2003 के टैरिफ निर्धारण प्रावधानों के तहत प्रदेश
के विद्युत उपभोक्ताओं व उपभोक्ता परिषद की बिंदुवार आपत्तियों पर बिजली कंपनियों को
सही जवाब देना बाध्यकारी और वैधानिक रेगुलेटरी फ्रेमवर्क का एक महत्वपूर्ण कार्य है।
इसके बावजूद भी बिजली कंपनियों ने आयोग के आदेश के बावजूद भी गोलमोल जवाब दाखिल कर
आयोग को गुमराह करने की कोशिश की गई है, जो आयोग की अवमानना की श्रेणी में आता है।
उपभोक्ता
परिषद अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा ने इस मुद्दे पर नियामक आयोग चेयरमैन आरपी सिंह से
भी बात की और पूरे मामले पर अभिलंब कार्यवाही करा कर बिजली कंपनियों से बिंदुवार जवाब
लेने की मांग उठाई। उपभोक्ता परिषद अध्यक्ष ने कहा यह चौंकाने वाला मामला है कि प्रदेश
के विद्युत उपभोक्ताओं का बिजली कंपनियों पर जो लगभग 22045 करोड़ रुपये का सरप्लस निकल
रहा है, उसके एवज में बिजली दरों में अगले 5 वर्षों तक 07 प्रतिशत कमी की जा सकती है।
इस सवाल पर बिजली कंपनियों ने केवल यह कहकर पल्ला झाड़ लिया है कि बिजली कंपनियों की
तरफ से अपीलेट ट्रिब्यूनल दिल्ली में मुकदमा दाखिल किया गया है। ऐसे में सवाल यह उठता
है केवल मुकदमा दाखिल करने से क्या कार्यवाही रुक जाती है? बार-बार सवाल उठाए जाने
के बाद भी बिजली कंपनियां चोर दरवाजे से भागने की कोशिश कर रहीं हैं, जिस पर आयोग गंभीरता
से विचार करे।
अवधेश कुमार वर्मा ने कहा कि बिजली कंपनियों ने लगभग एक करोड़ लाइफ लाइन विद्युत उपभोक्ताओं से 40 प्रति किलोवॉट फिक्स चार्ज अतिरिक्त वसूला है। साथ ही 35 पैसे प्रति यूनिट कि अधिक वसूली भी की है। लाखों उपभोक्ताओं से गलत भी वसूला गया है और लाखों विद्युत उपभोक्ताओं के बिलों में अधिक निर्धारण कर उन्हें बिल जारी किया गया है। जिस मुद्दे को उपभोक्ता परिषद ने राज्य सलाहकार समिति की बैठक सहित बिजली दर की सुनवाई में जोर-शोर से उठाया था। साथ ही लगातार 3 साल तक प्रत्येक वर्ष की गई वसूली 4585 करोड़ रुपया में से लगभग 1455 करोड़ रुपये की अधिक वसूली को उपभोक्ताओं को लौटाने के लिए उनके बिलों का संशोधन करने अथवा गलत बिल निर्धारण को समाप्त करते हुए सही बिल देने या विद्युत नियामक आयोग से इस अधिक धनराशि के सापेक्ष रिबेट देने की मांग उठाई थी। जिस पर प्रदेश की बिजली कंपनियों ने केवल 2 लाइन का जवाब लिख दिया कि पावर कारपोरेशन की आईटी विंग मामले को देख रही है। सवाल यह उठता है कि इतने गंभीर में मामले में अधिक वसूली के लिए दोषी लोगों पर कार्यवाही होनी चाहिए थी। वसूली को वापस कराने के लिए आयोग को जवाब देना चाहिए था लेकिन ऐसा ना करके केवल आईटी विंग देख रही है, ऐसा लिख देना प्रदेश के एक करोड़ विद्युत उपभोक्ताओं के साथ बड़ा धोखा है। उपभोक्ता परिषद अध्यक्ष ने नियामक आयोग से अनुरोध किया है कि जब तक बिजली कंपनियां उपभोक्ता परिषद के सवालों का जवाब आयोग को ना दाखिल कर दें, तब तक बिजली दर निर्धारण को अंतिम रूप ना दिया जाए। क्योंकि, विद्युत अधिनियम 2003 के प्रावधानों के अनुसार हर आपत्ति और सुझाव का जवाब देना बाध्यकारी है।