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Daily Insider Desk
• Fri, 15 Jul 2022 4:55 pm IST

एक्सक्लूसिव

...तो ये है अखिलेश यादव से ओम प्रकाश राजभर की नाराजगी! पर्दे के पीछे की कहानी कुछ और ही है

सुशील कुमार

लखनऊ। सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के मुखिया ओम प्रकाश राजभर इन दिनों समाजवादी पार्टी पर खूब हमलावर हैं। यह हमला उनका लगातार जारी है। हालांकि इस नाराजगी के बीच वो समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन में होने का भी लगातार दावा कर रहे हैं। लेकिन, शुक्रवार को उन्होंने सपा गठबंधन से इतर जाते हुए एनडीए की तरफ से राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार बनाईं गईं द्रौपदी मुर्मू के समर्थन का ऐलान कर दिया है। उनके इस ऐलान से द्रौपदी मुर्मू को एक बड़ी बढ़त मिलती हुई दिखाई दे रही है। वहीं एनडीए लगातार विपक्ष में सेंधमारी करता हुआ दिखाई दे रहा है। इस बीच समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने विपक्ष के उम्मीदवार यशवंत सिन्हा का साथ देने का ऐलान किया है। साथ ही लखनऊ में सपा कार्यालय पर उनके साथ प्रेस कांफ्रेंस कर इसकी आधिकारिक घोषणा भी कर चुके हैं।

लगातार हमलावर हैं ओम प्रकाश राजभर

यूपी विधानसभा चुनाव के बाद से ही अखिलेश यादव को लेकर ओम प्रकाश राजभर लगातार बयानबाजी कर रहे हैं। पहले राज्यसभा के चुनाव में उन्होंने सपा से नाराजगी व्यक्त की तो वहीं एमएलसी चुनाव में भी राजभर के अलावा उनके दोनों बेटों अरविंद राजभर और अरुण राजभर ने नाराजगी जताई थी। जबकि आजमगढ़ और रामपुर के लोकसभा उपचुनाव में मिली हार का ठीकरा भी उन्होंने अखिलेश यादव पर फोड़ दिया था। उन्होंने अखिलेश यादव को घर से बाहर नहीं निकलने का आरोप लगाते हुए खूब खरी-खोटी सुनाई थी।

अखिलेश यादव भी कर रहे किनारा

ओम प्रकाश राजभर के हमलों और आरोपों से लगातार अखिलेश यादव किनारा कर रहे हैं। राजभर की नाराजगी पर एक सवाल के जवाब के दौरान अखिलेश यादव ने कहा था कि कई लोगों की राजनीति पर्दे के पीछे से संचालित होती है। उन्होंने अपने इस बयान से राजभर पर निशाना साधा था। तल्खी का आलम यह है कि अखिलेश यादव ने ओम प्रकाश राजभर को यशवंत सिन्हा के डिनर और बैठक में भी आमंत्रित नहीं किया था। यही नहीं वह लगातार राजभर के मामले में बयान देने से भी बच रहे हैं।

राजभर की नाराजगी का क्या है कारण

अब ऐसे में सवाल खड़ा हो रहा है कि अखिलेश यादव की नाराजगी का मूल कारण क्या है। क्या वह सच में अखिलेश यादव की निष्क्रियता से नाराज हैं या बात कुछ और ही है। इस पर सपा के गठबंधन के एक और साथी नाम नहीं छापने की शर्त पर बताते हैं कि ओम प्रकाश राजभर बेटे को सेट करने की प्लानिंग में हैं। जिसमें वह असफल होने पर इस तरह की बयानबाजी कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि विधानसभा चुनाव में ओम प्रकाश राजभर का बड़ा बेटा अरविंद राजभर चुनाव हार गया था। जिसके बाद ओम प्रकाश राजभर ने अखिलेश यादव पर दबाव बनाया कि उनके बेटे को राज्यसभा भेजा जाए। हालांकि विधायकों की संख्या के आधार पर मात्र तीन ही लोग राज्यसभा जा सकते थे। ऐसे में अखिलेश यादव को आजम खां की नाराजगी भी दूर करनी थी वहीं रालोद के मुखिया जयंत चौधरी को भी खुश करना था। इसलिए उन्होंने आजम की सलाह पर कपिल सिब्बल के अलावा जावेद अली को और जयंत चौधरी को राज्यसभा भेज दिया। हालांकि इसमें डिंपल यादव का भी नाम आया था, लेकिन पर्याप्त सदस्य संख्या नहीं होने से ऐसा नहीं हो पाया। यहां पर राजभर को मायूस होना पड़ा। सूत्रों का दावा है कि अखिलेश यादव से राज्यसभा की सीट मांगने के साथ राजभर अमित शाह के भी संपर्क में थे। उनसे दिल्ली में मुलाकात भी की थी। लेकिन, वहां भी बात नहीं बनी। अखिलेश यादव को यह बात चुभ गई थी। उसके बाद एमएलसी के चुनाव में भी राजभर ने बेटे के लिए अखिलेश यादव पर दबाव बनाया लेकिन यहां पर भी दाल नहीं गल पाई। सूत्रों का दावा है कि बेटे को सदन में भेजने के सारे विकल्प समाप्त होने के बाद राजभर ने सीधा हमला अखिलेश पर बोलना शुरू कर दिया है।

आगे की राह होगी मुश्किल

राजभर की अखिलेश यादव से नाराजगी और राष्ट्रपति चुनाव में भाजपा समर्थित द्रौपदी मुर्मू को समर्थन दिये जाने के कई मायने निकाले जा रहे हैं। हालांकि राजभर लगातार दावा कर रहे हैं कि वह सपा के साथ ही गठबंधन में रहेंगे। लेकिन, सपा की ओर से अभी तक गठबंधन को लेकर कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है। हालांकि सपा नेता अमीक जामेई ने जरूर राजभर पर निशाना साधा है लेकिन इससे गठबंधन को लेकर अभी तक स्पष्ट नहीं हुआ है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि राजभर अकेले चुनाव लड़ने की स्थिति में नहीं हैं, ऐसे में उन्हें किसी ना किसी गठबंधन का हिस्सा बनना ही पड़ेगा। वह लगातार भाजपा नेताओं के संपर्क में बने हुए हैं, लेकिन वहां पर भी उनकी दाल गल नहीं रही है। ऐसे में 2024 के लोकसभा चुनाव के पहले राजभर के लिए राह मुश्किल होती जा रही है। क्योंकि, राजभर चाहते हैं कि कम से कम से दो या तीन सीट उन्हें मिल जाये, लेकिन जिस तरीके से अखिलेश यादव और भाजपा का रूख है, उनकी यह मंशा खटाई में पड़ती दिखाई दे रही है।