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Daily Insider Desk
• Thu, 25 May 2023 2:26 pm IST


परचम कुशाई के साथ 5वां उर्स-ए-ताजुश्शरिया का आगाज़

बरेली: सुन्नी बरेलवी मसलक के मजहबी रहनुमा ताजुश्शरिया मुफ्ती मुहम्मद अख्तर रज़ा खाँ क़ादरी अज़हरी (अज़हरी मियां) का दो रोज़ा उर्स-ए-ताजुश्शरिया का आगाज शुक्रवार से शुरू होने जा रहा है। उर्स की सभी रस्में काजी-ए-हिंदुस्तान मुफ्ती मोहम्मद असजद रज़ा खाँ कादरी की सरपरस्ती में और जमात रज़ा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष एंव उर्स प्रभारी सलमान मियां की सदारत में 26 व 27 मई को दरगाह ताजुश्शरिया और मथुरापुर स्थित मदरसा जामियातुर रज़ा में मनाया जायेगा। 
सलमान मियां ने बताया कि बाद नमाज़-ए-फज़र कुरान ख्वानी व नात-व-मनकबत की महफिल सजाई जाएगी। शाम को बाद नमाज़-ए-असर परचम कुशाई की रस्म अदा की जाएगी। जो पहला परचम सय्यद कैफी के निवास शाहबाद स्थित मिलन शादी हाल से निकलेगा। दूसरा परचम मोहम्मद साजिद आज़मनगर स्थित हरी मस्जिद से निकलेगा। तीसरा समरान खान के निवास सैलानी स्थित रज़ा चौक से निकलेगा। चादर का जुलुस जोगी नवादा से आएगा। तीनों परचम काजी-ए-हिंदुस्तान के हाथों दरगाह ताजुश्शरिया पर पेंश किए जाएंगे।
सलमान मिया ने बताया कि हुज़ूर ताजुश्शरिया के दुनिभर में करोड़ों मुरीद हैं, आप की पैदाइश 26 मोहर्रम 1362 हिजरी बामुताबिक 2 फ़रवरी 1943 ई. को हुई, आप के परदादा आला हज़रत, दादा हुज्जतुल इस्लाम व वालिद इब्राहीम रज़ा जोकि मुफ़स्सिरे आज़म के नाम से मशहूर हुए। आप को हुज़ूर मुफ़्ती ए आज़म हिन्द ने अपना क़ाइम मक़ाम व जानशीन बनाया। हुज़ूर ताजुश्शरिया की इब्तेदाई तालीम अपने घर पर वालिदे माजिदा व वालिदे मोहतरम से हुई। हिंदी व अंग्रेजी आदि की तालीमन इस्लामिया इंटर कॉलेज से की उसके बाद दारुल उलूम मन्ज़रे इस्लाम में दाखिला लिया और दरसे निज़ामी (आलिम का कोर्स) मुकम्मल किया, आपके उस्ताद शेख अब्दुल तव्वाव के मश्वरे से आपके वालिद ने आपको मिस्र की मशहूर यूनिवर्सिटी जामिआ अल अज़हर 1963 में भेज वहा से आपने 1966 में डिग्री हासिल की। हुज़ूर ताजुश्शरिया ने अरबी, उर्दू, अंग्रेजी आदि भाषाओं में किताबें लिखीं और आपने आला हज़रत की कई किताबों को अरबी में अनुवाद करके अरब देशों तक पहुंचाया, आपने अरबी, उर्दू भाषाओं में नातों मनकबत लिखीं, जिनका मजमुआ सफीना ए बख्शीश और नग़्माते अख्तर के नाम से मशहूर है। 
आपने मसलके आला हज़रत का पैग़ाम अरब, यूरोप, एशिया, अमरीका, अफ्रीका, कनाडा आदि आदि देशों में पहुंचाया, अपनी ज़िन्दगी भर दीन की खिदमत के लिए बहुत से देशों के सफर किये। आपको जामिआ अल अज़हर से फखरे अज़हर का अवार्ड मिला। आपको काबे के ग़ुस्ल के लिए 2009 में दावत पर बुलाया गया। आपने कई हज किये। आपका विसाल 7 ज़ीक़ादा 1439 हिजरी बामुताबिक 20 जुलाई, 2018 ई. को हुआ। आपके इंतेक़ाल की खबर सुनते हुए दुनियाभर में ग़म का माहोल हो गया, आपके जनाज़े में करोड़ों लोगों ने शिरकत की और आपके साहिबज़ादे व जानशीन हुज़ूर क़ाइद ए मिल्लत मुफ़्ती मुहम्मद असजद रज़ा खान क़ादरी ने नमाज़े जनाज़ा पढ़ाई।