बरेली। उत्तर भारत के सबसे प्राचीन शिक्षण संस्थानों में एक बरेली कॉलेज आज अपना 185वां स्थापना दिवस मना रहा है। कॉलेज की स्थापना 17 जुलाई 1837 में ब्रिटिश हुकूमत के दौरान हुई थी।
बरेली कॉलेज की इमारत ये इमारत सिर्फ एक शिक्षण संस्थान ही नही है बल्कि इस इमारत के सीने में आजादी की लड़ाई की तमाम कहानियां दफन है। प्रथम स्वतंत्रता संग्राम से लेकर 1965 में राष्ट्रभाषा हिन्दी के आंदोलन तक में इस कॉलेज की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है खास बात यह है कि आजादी की लड़ाई में यहां के छात्रों के साथ ही शिक्षकों ने भी अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ बिगुल फूंका था।
1- इस कॉलेज की स्थापना 1837 में ब्रिटिश हुकूमत के दौरान हुई थी लेकिन जब अंग्रेजों के खिलाफ 1857 में क्रांति का बिगुल बजा तो रुहेलखण्ड में इस आंदोलन की बागडोर रुहेला सरदार खान बहादुर खान के हाथ मे थी और उनके नेतृत्व में क्रांतिकारी अंग्रेजों से लोहा ले रहे थे।बरेली कॉलेज के शिक्षक मौलवी महमूद हसन और फ़ारसी शिक्षक कुतुब शाह समेत तमाम राष्ट्रवादी छात्र इस आंदोलन में शामिल हुए। बरेली कॉलेज में तमाम बैठकें भी होती थी और क्रांतिकारियों ने कॉलेज के प्रिंसपल डॉक्टर कारलोस बक को भी क्रांतिकारियों ने मौत के घाट उतार दिया था।
2- कॉलेज में फारसी पढ़ाने वाले शिक्षक कुतुब शाह नवाब खान बहादुर खान के समस्त आदेश और फरमान प्रेस में छाप कर लोगों के बीच बाटते थे।कुतुब शाह ने एक तरह से अंग्रेजों की नाक में दम कर रखा था।जिसके कारण अंग्रेजों ने उन्हें पकड़ कर फांसी की सजा सुनाई गई जो बाद में काला पानी में बदल गई और सजा काटते समय उनकी अंडमान में मौत हो गई।इसके साथ ही रामपुर निवासी जैमीग्रीन बरेली कॉलेज के छात्र थे और वो बेगम हजरत महल के चीफ इंजीनियर के रूप में काम किया था और उन्होंने सिकन्दर बाग का युद्ध जैमीग्रीन ने लड़ा था और उन्हें उन्नाव में फ़ौज में जासूसी करते वक्त गिरफतार हुए और उन्हें फांसी दी गई।
3- बरेली कॉलेज का आजाद छात्रावास की नींव सन 1906 में रखी गयी थी।हॉस्टल में कुल 72 कमरे थे। बरेली कॉलेज के आजाद छात्रावास ने 1929 से 1943 तक राष्ट्रीय आंदोलनों में अहम भूमिका निभाई थी।
4- 1857 से शुरू हुआ आंदोलन देश की आजादी तक शामिल रहा। महात्मा गांधी के भारत छोड़ो आंदोलन में भी बरेली कॉलेज के तमाम छात्र शामिल हुए तो सुभाष चंद्र बोस की आजाद हिन्द फौज के लिए भी यहाँ के छात्रों ने छात्र संघ कोष का सारा पैसा देने का प्रस्ताव पारित किया था। यहाँ के छात्र कृपनन्दन ने कॉलेज में तिरंगा फहराया था। शहीदे आजम भगत सिंह के चाचा अजीत सिंह ने यहाँ एक साल लॉ की पढ़ाई की और क्रान्ति में हिस्सा लिया। इसके साथ ही यहाँ के छात्र दरबारी लाल शर्मा,सतीश कुमार ,रमेश चौधरी, दामोदर स्वरूप और कृष्ण मुरारी ने आजादी की लड़ाई में अहम भूमिका निभाई थी।
5- कॉलेज की शुरूआत सन 17 जुलाई सन 1837 में ब्रटिश काल में हुई मात्र 57 बच्चोंं से हुई थी। जीआईसी मैदान पर बरेली कॉलेज का पुराना खंडहरनुमा भवन अभी भी मौजूद है। बुजुर्गों की मानें तो अंग्रेजों के शासनकाल में इसी भवन में बरेली कॉलेज की शुरूआत की गई थी।
6- स्थानीय इतिहासकारों का कहना है बरेली कॉलेज शुरूआत में अंग्रेजी हुकूमत के समय कोतवाली के सामने स्थित जीआईसी के मैदान में बने छोटे से भवन में संचालित होता था। शुरूआत में इसमें अंग्रेजी हूकुमत के बाबुओं और छोटे अफसरों के बच्चे भी शिक्षा प्राप्त करते थे। जैसे- जैसे समय बीतता गया स्कूल में छात्र-छात्राओं की संख्या बढ़ती गई। स्कूल के बाद रुहेलखंड में स्नातक की पढ़ाई भी चुनौती बन गई।
7 - छात्रों के हित में तत्कालीन ब्रिटिश सरकार और देश के राजा, महाराजा और रुहेलखंड के नवाबों ने सन 1906 में बरेली कॉलेज को रामपुर बाग के पास स्थानांतरित कर दिया गया। इसके साथ ही शिक्षा के क्षेत्र में बरेली ने रफ्तार पकड़ ली। यही कारण है कि 57 बच्चों के स्कूल के रुप में शुरू हुआ बरेली कॉलेज आज देश- विदेश में अपनी अलग ही पहचान बनाए हुए है।
8- बरेली शहर और रुहेलखंड की पहचान के रुप में आज भी बरेली कॉलेज की शान बरकरार है। हजारों छात्र-छात्राओं की क्षमता वाल यह महाविद्यालय आज भी बरेली समेत पश्चिमी उत्तर प्रदेश के पहली पंसद रहता है।
9- इतिहासकारों की मानें तो कॉलेज की शुरूआत करने के लिए रामपुर के नबाव ने 110 एकड़ जमीन दान में दी थी। जिससे कि इस क्षेत्र में कॉलेज का विशाल कैंपस बनाया जाए। शुरूआत में कॉलेज में अंग्रेजी और गणित विभाग से शुरूआत हुई थी। आज भी इस प्राचीन इमारत का भवन ज्यों का त्यों बना हुआ है।
10- बरेली कॉलेज को लम्बे समय से यूनिवर्सिटी बनाने की मांग की जा रही है लेकिन अभी तक ये मांग पूरी नहीं हो पाई है।