बरेली: कृषि विज्ञान केन्द्र, भाकृअनुप-भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान, इज्जतनगर ने गौ आधारित प्राकृतिक खेती विषय पर एक दिवसीय प्रशिक्षण व विधि प्रदर्शन का आयोजन किया। एक देसी गाय के गोमूत्र व गोबर पर आधारित प्राकृतिक खेती में प्रयोग होने वाले उत्पादों जैसे- जीवामृत, बीजामृत, घनजीवामृत, पंचगव्य, अग्नि अस्त्र, ब्रह्मास्त्र, नीमास्त्र, दशपर्णी अर्क, सप्त धान्यांकुर के बारे में विस्तार से जानकारी दी गई।
मुख्य अतिथि डॉ. महेश चंद्र, संयुक्त निदेशक प्रसार शिक्षा ने अपने सबोधन में किसानों को
जैविक व प्राकृतिक खेती के महत्व पर विस्तार से जानकारी दी। उन्होंने कहा कि भारत
सरकार जैविक व प्राकृतिक खेती को बड़ावा दे रही है। इसके लिए कई कार्यक्रम चलाये जा रहे हैं। उन्होंने
किसानों को कहा कि आप यहां से जो ज्ञान सीख कर जा रहे हैं, उसे अपने गांव के अन्य लोगों से साझा करें। किसानों को
जैविक और प्राकृतिक खेती अपनाने को प्रेरित करें, क्योंकि इस खेती
में निर्यात की अपार संभावनाएं हैं।
प्राकृतिक खेती पर जोर
राकेश पांडे, विषय वस्तु विशेषज्ञ (सस्य विज्ञान) ने अपने व्याख्यान में जीवामृत, बीजामृत, घनजीवामृत, पंचगव्य, अग्नि अस्त्र, ब्र्ह्मास्त्र, नीमास्त्र, दशपर्णी अर्क, सप्त धान्यांकुर आदि बनाने और उसकी भंडारण क्षमता के संबंध में विस्तार से जानकारी दी। इनके प्रयोग के विषय में उन्होंने बताया कि पलेवा के समय और खड़ी फसल में जीवामृत, घनजीवामृत, पंचगव्य, फसल पोषण हेतु सप्त धान्यांकुर, बीज उपचार हेतु बीजामृत, रोगों व कीटों से बचाने के लिए अग्नि अस्त्र, ब्र्ह्मास्त्र, नीमास्त्र, दशपर्णी अर्क का प्रयोग किया जाता है। मृदा को मुख्य रूप से जिन तत्वों की आवश्यकता है। प्राकृतिक खेती वही आवश्यकता परिपूर्ण कर रही है। मृदा में रहने वाले जीवाणु जो मिट्टी से पोषक तत्वों को पौधों को उपलब्ध कराती है, उन्हीं जीवाणुओं को प्राकृतिक खेती द्वारा सशक्त किया जाता है। आधुनिक तकनीकों व रसायनों से युक्त खेती में इन जीवाणुओं की संख्या बहुत ही कम हो गयी, जिसको प्राकृतिक खेती द्वारा फिर से बढ़ाया जा रहा है।
डॉ. बीपी सिंह, अध्यक्ष कृषि विज्ञान केंद्र ने अपने सम्बोधन में कृषको को प्राकृतिक खेती के
गुणों, कम लागत ज्यादा मुनाफे, गांव के युवकों
को इस खेती में आगे बढ़ने, अपने गांव में
बदलाव लाने और प्राकृतिक खेती के उत्पादों के विक्रय के लिए कृषक उत्पादक संगठन को
माध्यम बनाने के लिए कार्य करने के लिए प्रोत्साहित किया। रंजीत सिंह ने बागवानी
फसलों जैसे- फल, सब्जियों व फूलों
की खेती में प्राकृतिक खेती के महत्व और उत्पादों को विपणन के लिए तैयार करने के संबंध
में जानकारी दी।
कार्यक्रम में 28 युवकों ने किया सहभाग
दुर्गादत्त शर्मा ने गोमूत्र से हैंड सैनेटाइजर बनाने, फ्लोर क्लीनर
बनाने आदि तथा स्वच्छता अभियान के सम्बन्ध में जानकारी दी। श्रीमती वाणी यादव ने
कृषकों को घनजीवामृत का विधि प्रदर्शन कृषि विज्ञान केंद्र अनुदेशात्मक प्रक्षेत्र
में दिखाया। लगभग 100 किलो देसी गाय का
गोबर, 10 लीटर देसी गाय का
गोमूत्र, 1 किलो बेसन, 1 किलो गुड व एक
मुट्ठी नीम व बरगद के पेड़ के नीचे की मिट्टी प्रयोग करके 1 कुंटल घनजीवामृत
तैयार किया, जो 2-3 दिन बाद एक एकड़
खेत में प्रयोग करने हेतु तैयार होता है। कृषकों को यह तकनीकी अपनाने से होने वाले
लाभ पर चर्चा की। इस प्रशिक्षण कार्यक्रम 28 युवकों ने सहभागिता दर्ज की।