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Daily Insider Desk
• Thu, 25 May 2023 5:57 pm IST


‘इल्म के ख़ज़ाने के साथ-साथ तमाम खूबियों के मालिक थे ताजुशशरिया’

बरेली: आला हज़रत फ़ाज़िले बरेलवी की तीसरी पीढ़ी की अहम शख्सियत सुन्नी बरेलवियों के ताजदार,जानशीने मुफ़्ती-ए-आज़म हिन्द व काज़ियुल क़ुज़्ज़ात फ़िल हिन्द की पैदाइश (जन्म) 1943 ईसवी (1362 हिजरी) को बरेली के मोहल्ला सौदागारान में आला हज़रत के पोते मुफ़स्सिर-ए-आज़म मुफ़्ती इब्राहीम रज़ा खान(जिलानी मियां) के घर हुई। आपका खानदान अफगानिस्तानी कबीला-ए-भड़ूच से ताल्लुक रखता है। आपका नाम मोहम्मद इस्माइल रज़ा खान उर्फ मोहम्मद अख़्तर रज़ा खान अज़हरी था। दुनियाभर में आप ताजुशशरिया के नाम से मशहूर हुए। आपने अपनी शख्सियत को इल्म के उस गहरे समंदर में डुबो दिया था,जहाँ से बेशकीमती इल्मी मोती हासिल कर लिए थे। बचपन से ही आप बड़े फ़क़ीह व ज़हीन और तमाम खूबियों के मालिक के अलावा मुफ़्ती,आलिम, फ़ाज़िल, हाफ़िज़, कारी,शायर, मुहद्दिस, मुसन्निफ़ (लेखक), मुहक़्किक़, मुफ़क़्किर थे। तकरीबन चालीस से ज़्यादा उलूम व फुनून पर महारत हासिल थी। हिंदी होने के बावजूद अरबी जुबान के बेहतरीन माहिर थे। इसके अलावा उर्दू, फ़ारसी, अंग्रेज़ी, मलयालम जुबानों के जानकार भी थे। दुनियाभर में मसलक आला हज़रत के प्रचार-प्रसार में इन जुबान (भाषा) ने आपकी बड़ी मदद की। 
शुरुआती तालीम बरेली में आला हज़रत द्वारा स्थापित मदरसा मंज़र-ए-इस्लाम से हासिल करने के बाद आप 1963 ईस्वी में इस्लामिक जगत की सबसे बड़ी अल अज़हर यूनिवर्सिटी (मिस्र) तशरीफ़ ले गए। यहाँ मुस्सलसल (लगातार) तीन वर्ष तालीम हासिल कर 1966 में वापिस बरेली तशरीफ़ लाये। 1966 में आपने पहला फतवा लिखा जो 50 साल तक जारी रहा। मिस्र की अल अज़हर यूनिवर्सिटी के 1100 साला इतिहास में चंद लोगों को फ़ख्र-ए-अज़हर अवार्ड दिए गए उनमें के एक आपको दिया गया। जॉर्डन की जॉर्ज टाउन यूनिवर्सिटी ने दुनिया के 500 प्रभावशाली व्यक्तियों में आपको 22वां स्थान दिया। आपने जो कुछ भी अपनी ज़िंदगी मे पाया वह सिर्फ इश्के रसूल और शरीयते मतहरा पर सख़्ती से अमल करके ही पाया है। आपका निकाह नवंबर 1968 में अल्लामा हसनैन रज़ा खान साहब की साहिबज़ादी से हुआ। 
आपके एक साहिबजादे मुफ़्ती असजद रज़ा क़ादरी के अलावा पांच साहिबजादिया (बेटियां) है। 1982 में मरकज़ी दारुल इफ्ता क़ायम किया। इसके अलावा मथुरापुर स्थित जामियातुर रज़ा जो आपके द्वारा क़ायम किया गया जहां आज भी हज़ारों छात्र तालीम हासिल कर रहे है। पहला हज आपने 1983 में किया इसके अलावा अनेक उमराह किये। आपको अपने साहिबजादे व जानशीन मुफ़्ती असजद रज़ा खान क़ादरी(असजद मियां) के साथ  दुनियाभर के मुसलमानों का इबादत का केंद्र खाना-ए-काबा में दाखिल हो कर इबादत व रियाज़त का शर्फ़ हासिल हुआ। आपको हुज़ूर  मुफ़्ती-ए-आज़म हिन्द ने मात्र 19 साल की उम्र में 1962 ईस्वी को तमाम सिलसिलों की ख़िलाफ़त व इजाज़त से नवाज़ा। इसके अलावा हुज़ूर कुतुब-ए-मदीना,हुज़ूर बुरहान-ए-मिल्लत,हुज़ूर सय्यदुल उलेमा, हुज़ूर मुजाहिद मिल्लत, हुज़ूर अहसानुल उलेमा आदि से इजाज़त व खिलाफत हासिल थी। 
ताजुशशरिया के सैकड़ों की तादात में खुल्फ़ा है, जिनमें अरबी खुल्फ़ा की तादात 50 से अधिक है। पूरी दुनिया मे आपके करोड़ो मुरीद है। मज़हब व मसलक की ख़िदमत करते हुए हुज़ूर ताजुशशरिया 18 जुलाई 2018 ईस्वी वक़्त-ए-मगरिब(सूर्यास्त के समय) इस दुनिया-ए-फानी से कूच कर गए। आपके आखिरी दीदार के लिए मुल्क-ए-हिंदुस्तान के अलावा दुनियाभर के लाखों अकीदतमंद बरेली पहुँचे। आपकी आखिरी आरामगाह मोहल्ला सौदागारान स्थित आला हज़रत के मज़ार के बराबर में क़ायम की गई। आज इन्हीं आशिके रसूल और अपने पेशवा को 5 वे उर्स के मुबारक मौके पर दुनियाभर से लाखों ज़ायरीन खिराज़ पेश करने बरेली की सरजमीं पहुँच रहे है।