पाकिस्तान ने रखा था 50 हजार रुपए का इनाम
बरेली: एफ आर इस्लामिया इंटर कॉलेज में ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान की 110 वीं जयंती केक काटकर धूमधाम के साथ मनाई गई। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए मेजर जावेद खालिद ने कहा वह अकेले भारतीय सैनिक थे। उनके सिर पर पाकिस्तान ने 50,000 रुपए का ईनाम रखा था। उस ज़माने में यह बहुत बड़ी रक़म हुआ करती थी। 1948 में नौशेरा की लड़ाई के बाद उन्हें 'नौशेरा का शेर' कहा जाने लगा था।
मुख्य वक्ता के रूप में बोलते हुए भौतिक विज्ञान प्रवक्ता फरहान अहमद ने कहा कि अपने छोटे से जीवनकाल में उन्होंने वह सब हासिल कर लिया, जिसको बहुत से लोग उनसे दोगुना जी कर भी नहीं कर पाते हैं। वर्ष 1947 तक वो ब्रिगेडियर बन चुके थे। उन्होंने ही ब्रिगेड में एक दूसरे से बात करते हुए जय हिंद कहने का प्रचलन शुरू करवाया था। आजादी के बाद मोहम्मद अली जिन्ना और लियाक़त अली दोनों ने कोशिश की कि उस्मान भारत में रहने का अपना फ़ैसला बदल दें।
उनको तुरंत पदोन्नति देने का लालच भी दिया लेकिन वह अपने फ़ैसले पर क़ायम रहे। अगर ब्रिगेडियर उस्मान की समय से पहले मौत न हो गई होती तो वह शायद भारत के पहले मुस्लिम थल सेनाध्यक्ष होते। वरिष्ठ प्रवक्ता डॉ मेहंदी हसन ने उनकी बहादुरी के कई किस्से सुनाए। अपनी बहादुरी की वजह से उन्होंने सेना में चुने जाने के लिए आवेदन किया।
1 फ़रवरी 1934 को वो सैंडहर्स्ट से पास होकर निकले। वह इस कोर्स में चुने गए 10 भारतीयों में से एक थे। सैम मानेकशॉ और मोहम्मद मूसा उनके बैचमेट थे जो बाद में भारतीय और पाकिस्तानी सेना के चीफ़ बने। विभाजन के समय हर कोई उम्मीद कर रहा था कि वह पाकिस्तान जाना पसंद करेंगे लेकिन उन्होंने भारत में ही रहने का फ़ैसला किया जम्मू कश्मीर में पाकिस्तानी सैनिकों से लड़ाई लड़ते हुए 3 जुलाई 1948 में वे शहीद हो गए तदोपरांत उन्हें दुश्मन के सामने बहादुरी के लिए भारत के दूसरे सबसे बड़े सेन्य पदक महावीर चक्र से सम्मानित किया गया। इस मौके पर मोहम्मद नसीम अंसारी, शाहिद रजा, एनसीसी कैडेट्स के साथ तमाम छात्र मौजूद रहे।