अपने परिजनों का इंतजार कर रही है अस्थियां

लोगों को अपने परिजनों के अंतिम संस्कार व अन्य सामाजिक जिम्मेदारी के लिए समय नहीं है

बरेली। सनातन धर्म के मानने वालों के लिए श्राद्ध पक्ष विशेष महत्व रखता है और लोगों अपने पितरों के नाम से जल तर्पण व दान पुण्य करते है और पितरों के प्रति श्रद्धा भाव प्रकट करते है। ऐसी हमारी सनातन धर्म की संस्कृति है। लेकिन आधुनिकता के दौर में तमाम सनातनी में संस्कृति से विमुख हो रहे हैं और इसके कारण हमारे समाज का नैतिक मूल्यों में गिरावट आ रही हैं। वहीं दूसरी तरफ हर व्यक्ति की अपेक्षा होती है वह व्यक्ति सम्मान के साथ जीवन व्यतीत करें और अंत में सम्मानपूर्वक संसार से विदा हो। लेकिन बदलते दौर में सब कुछ बदल गया है और लोगों को अपने परिजनों के अंतिम संस्कार व अन्य सामाजिक जिम्मेदारी के लिए समय नहीं है। इसी एक बानगी संजय नगर स्थित श्मशान घाट पर देखने को मिली। यह पर रोजाना बड़ी संख्या में अंतिम संस्कार होते हैं और मृतक के परिजन तीसरे दिन उनकी अस्थियां को एकत्र कर पवित्र नदी में प्रवाहित कर देते हैं या फिर श्मशान घाट पर मृतक की अस्थियां को रख देते हैं। इसके बाद मृतक के परिजन अपनी सुविधानुसार अस्थियों को प्रवाहित कर देते हैं । लेकिन बहुत से ऐसे अभागे लोग हैं उनके परिजन उनकी अस्थियां को प्रवाहित करने को भूल गए हैं और सौ से ज्यादा अस्थियां आज भी कलश में पड़ी अपने परिजनों के आने का इंतजार कर रही है। लेकिन ऐसे दौर में भी लोगों में मानवता जिंदा है और यह लोग सामाजिक जिम्मेदारी निभा रहे हैं। इसी सामाजिक जिम्मेदारी बरेली के कुछ लोग चुपचाप निभा रहे। इस काम को अंजाम देने वाले दीपक कुमार ने बताया कि हमारा एक ग्रुप ग्रुप पिछले कई सालों से पांच सौ लोगों की अस्थियां हरिद्वार में विसर्जन कर चुके हैं और अब फिर करीब पांच अस्थि कलश हरिद्वार विसर्जन कर जा रहे हैं। इस सम्बंध में श्मशान घाट कमेटी के प्रबंधक भगवान स्वरूप ने बताया कि हमारी कमेटी का नियम है कि मृतक व्यक्ति की अस्थियां को तीस दिन के भीतर प्रवाहित कर दें। लेकिन अधिकांश लोग अपने परिजनों की अस्थियां को प्रवाहित कर देते हैं इसके बावजूद भी तमाम लोगों की आज अस्थि कलश पड़े हुए हैं। इस काम को कमेटी या खुद या सामाजिक संगठन के जरिए करवाती है।