बरेली: बिहार कलां में बड़े एहतराम और शानो-शौकत के साथ उर्स-ए-साबिर पाक मनाया गया। इस मुबारक महफ़िल की सदारत हाफ़िज़ इमरान रज़ा बरकाती साहब ने की। उर्स-ए-साबिर पाक की इस पाकीज़ा महफ़िल की शुरुआत हाफ़िज़ अर्शद रज़ा ने कलाम-ए-पाक की तिलावत से की। इस मौक़े पर शायरों ने नातो-मनक़बत का नज़राना पेश किया। नसीम बरकाती ने पढ़ा, “हो गया मैं मुअत्तर साबिर पिया, मिल गया तुम्हारा दर साबिर पिया, काश जाता इस तरह तैबा नगर, आप होते हमसफ़र साबिर पिया।”
मौलाना उमर रज़ा ने सरकार साबिर-ए-पाक की हयात-ए-मुबारक के बारे में बताया। उन्होंने ताकीद की कि ज़िंदगी के हर मामले में शरीअत की पाबंदी का ध्यान रखें, यही साबिर-ए-पाक से सच्ची मुहब्बत और अक़ीदत की दलील है। आख़िर में हाफ़िज़ इमरान रज़ा बरकाती ने मुल्को-मिल्लत के लिए ख़ुसूसी दुआ फ़रमाई। इस मौक़े पर मौलाना उमर, मौलाना ज़फ़र, हाफ़िज़ नौशाद आलम, हाफ़िज़ ज़ुल्फिकार, शायर नसीम बरकाती, अहमद रज़ा ज़ियाई, नईम मोहम्मद्, कलीम खां, यासीन समेत बड़ी तादाद में अक़ीदतमंद शामिल हुए।