पतंजलि ने अखबारों में छपवाया माफीनामा, सुप्रीम कोर्ट ने पूछा- ‘क्या विज्ञापनों के साइज में है माफी’

नई दिल्‍ली: पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड के प्रबंध निदेशक (एमडी) बालकृष्ण और योग गुरु रामदेव ने सुप्रीम कोर्ट से मंगलवार (23 अप्रैल) को कहा कि उन्होंने भ्रामक विज्ञापन मामले में अपनी ओर से हुई गलतियों के लिए समाचार पत्रों में बिना शर्त माफी प्रकाशित की है। इसके बाद जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की पीठ ने रामदेव और बालकृष्ण के वकील से समाचार पत्रों में प्रकाशित माफीनामे को दो दिनों के भीतर रिकॉर्ड में पेश करने को कहा। बता दें कि इस मामले में अगली सुनवाई 30 अप्रैल को होगी।

बालकृष्‍ण और रामदेव की ओर से पेश वकील ने पीठ से कहा कि वे अपनी गलतियों के लिए बिना शर्त माफी मांगते हुए अतिरिक्त विज्ञापन भी जारी करेंगे। दोनों की ओर से पेश वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी ने कहा कि उन्होंने सोमवार को देश भर के 67 समाचार पत्रों में माफीनामा प्रकाशित कराया है।

माफी 67 अखबारों में प्रकाशित हुई

जस्टिस कोहली ने पूछा कि क्या माफी आपके विज्ञापनों के आकार के बराबर मांगी गई है? इस पर रोहतगी ने कहा कि माफी 67 अखबारों में प्रकाशित हुई थी। इसकी लागत दसियों लाख है। वहीं, न्यायमूर्ति कोहली ने कहा कि हम सोच रहे हैं कि क्या आपके द्वारा प्रकाशित पूरे पृष्ठ के विज्ञापनों के लिए लाखों रुपये खर्च होते हैं?

मामले में पीठ ने आगे की सुनवाई के लिए 30 अप्रैल की तारीख तय की। न्यायालय ने रामदेव और बालकृष्ण को 16 अप्रैल को हिदायत दी थी कि वे ‘एलोपैथी को नीचा दिखाने’ का कोई प्रयास नहीं करें। न्यायालय ने उन्हें पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड के भ्रामक विज्ञापन के मामले में एक सप्ताह के भीतर ‘सार्वजनिक रूप से माफी मांगने और पछतावा प्रकट करने’ की अनुमति दी थी। शीर्ष अदालत ने यह भी स्पष्ट किया था कि वह अभी उन्हें इस चरण में राहत नहीं देगी।

शीर्ष अदालत 2022 में इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही है, जिसमें कोविड टीकाकरण और आधुनिक चिकित्सा पद्धतियों के खिलाफ एक दुष्प्रचार अभियान चलाने का आरोप लगाया गया है। पतंजलि के भ्रामक विज्ञापन मामले में आज सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। इस दौरान योग गुरु रामदेव और आचार्य बालकृष्ण  मौजूद रहे। कोर्ट ने इंडियन मेडिकल एसोसिएशन को फटकार लगाते हुए कहा कि वह पतंजलि पर अंगुली उठा रहा है, जबकि चार अंगुलियां उन पर इशारा कर रही हैं।

एफएमसीजी भी भ्रामक विज्ञापन प्रकाशित कर रहे

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एफएमसीजी भी जनता को भ्रमित करने वाले भ्रामक विज्ञापन प्रकाशित कर रहे हैं, जिससे विशेष रूप से शिशुओं, स्कूल जाने वाले बच्चों और उनके उत्पादों का उपभोग करने वाले वरिष्ठ नागरिकों के स्वास्थ्य पर असर पड़ रहा है। कोर्ट ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के लाइसेंसिंग अधिकारियों को मामले में पक्षकार बनाने को कहा है। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्रीय मंत्रालयों को तीन साल तक भ्रामक विज्ञापनों पर की गई कार्रवाई के संबंध में हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया।

अदालत ने कहा कि इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) के कथित अनैतिक आचरण के संबंध में कई शिकायतें हैं। आईएमए को अपने कथित अनैतिक कृत्यों के संबंध में भी अपनी स्थिति दुरुस्त करनी होगी, जहां ऐसी दवाएं लिखी जाती हैं जो महंगी और अनावश्यक हैं। पीठ ने कहा कि केंद्र सरकार को इस मामले पर जागना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि वह (मामले में) सह-प्रतिवादी के रूप में उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय, सूचना और प्रसारण मंत्रालय से सवाल पूछ रहा है। देश भर के राज्य लाइसेंसिंग अधिकारियों को भी पार्टियों के रूप में जोड़ा जाएगा और उन्हें भी कुछ सवालों के जवाब देने होंगे।

इंडियन मेडिकल एसोसिएशन को भी फटकार

सुप्रीम कोर्ट ने इंडियन मेडिकल एसोसिएशन को भी फटकार लगाई। अदालत ने कहा कि वह पतंजलि पर अंगुली उठा रहा है, जबकि चार अंगुलियां उन पर इशारा कर रही हैं। आईएमए से सुप्रीम कोर्ट ने पूछते हुए कहा कि आपके (आईएमए) डॉक्टर भी एलोपैथिक क्षेत्र में दवाओं का समर्थन कर रहे हैं। अगर ऐसा हो रहा है, तो हमें आप (आईएमए) पर सवाल क्यों नहीं उठाना चाहिए?

सुप्रीम कोर्ट इस मामले में अगली सुनवाई 30 अप्रैल को करेगी। कोर्ट का कहना है कि यह किसी विशेष पार्टी के लिए हमला करने के लिए नहीं है, यह उपभोक्ताओं या जनता के व्यापक हित में है कि उन्हें कैसे गुमराह किया जा रहा है और सच्चाई जानने का उनका अधिकार है और वे क्या कदम उठा सकते हैं।