विद्या मन्दिर रामबाग में मनाया गया मकर संक्रांति पर्व

कार्यक्रम का प्रारम्भ माँ सरस्वती की वन्दना से हुआ

बस्ती: सरस्वती विद्या मन्दिर वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय रामबाग में आज मकर संक्रांति उत्सव मनाया गया। कार्यक्रम का प्रारम्भ माँ सरस्वती की वन्दना से हुआ। वंदना सभा को सम्बोधित करते हुए विद्यालय के वरिष्ठ आचार्य रामजन्म विश्वकर्मा ने मकर संक्रांति के महत्त्व को रेखांकित करते हुए कहा कि पौष मास में सूर्य उत्तरायण होकर मकर राशि में विराजमान होते हैं, तो इस अवसर को देश के विभिन्न प्रांतों में अलग-अलग त्योहार जैसे लोहड़ी, कहीं खिचड़ी, कहीं पोंगल आदि के रूप में मनाते हैं। हिंदू धर्म में मकर संक्रांति ऐसा त्योहार है, जिसका धार्मिक के साथ वैज्ञानिक महत्व भी है।

पुराणों में मकर संक्रांति को देवताओं का दिन बताया गया है। मान्यता है कि इस दिन किया गया दान सौ गुना होकर वापस लौटता है। मकर संक्रांति से अच्छे दिनों की शुरुआत हो जाती है, क्योंकि इस दिन मलमास समाप्त होते हैं। इसके बाद से सारे मांगलिक कार्य विवाह, मुंडन, जनेऊ संस्कार आदि शुरू हो जाते हैं। मकर संक्रांति के धार्मिक महत्त्व को बताते हुए उन्होंने आगे कहा कि मान्यता है कि मकर संक्रांति के दिन स्वर्ग का दरवाजा खुल जाता है। इस दिन पूजा, पाठ, दान, तीर्थ नदी में स्नान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है।

पौराणिक कथा के अनुसार भीष्म पितामह को इच्छा मृत्यु का वरदान प्राप्त था, लेकिन दक्षिणायन सूर्य होने के कारण बाणों की शैया पर रहकर उत्तरायण सूर्य का इंतजार करके मकर संक्रांति होने पर उत्तरायण में अपनी देह का त्याग किया, ताकि वह जन्म-मरण के बंधन से मुक्त हो जाएं। मां गंगा मकर संक्रांति वाले दिन पृथ्वी पर प्रकट हुईं। गंगा जल से ही राजा भागीरथ के 60,000 पुत्रों को मोक्ष मिला था। इसके बाद गंगा जी कपिल मुनि के आश्रम के बाहर सागर में जाकर मिल गईं। सूर्य के उत्तरायण हो जाने से प्रकृति में बदलाव शुरू हो जाता है। ठंड की वजह से सिकुड़ते लोगों को सूर्य के तेज प्रकाश के कारण शीत ऋतु से राहत मिलना आरंभ होता है। हालांकि मकर संक्रांति पर ठंड तेज होती है, ऐसे में शरीर को गर्मी पहुंचाने वाली खाद्य साम्रगी खाई जाती है। यही वजह है कि मकर संक्रांति पर तिल, गुड़, खिचड़ी खाते हैं, ताकि शरीर में गर्माहट बनी रहे।