नई दिल्ली: 78वें स्वतंत्रता दिवस पर सुप्रीम कोर्ट में आयोजित स्वतंत्रता दिवस समारोह में भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने अपने भाषण के दौरान कहा कि हमने वर्षों पहले स्वतंत्रता की अनिश्चितता को चुना था, और आज जो हो रहा है, जैसे कि बांग्लादेश में, वह हमें स्पष्ट रूप से याद दिलाता है कि स्वतंत्रता हमारे लिए कितनी कीमती है. सीजेआई ने कहा कि पिछले 24 वर्षों से एक न्यायाधीश के रूप में, मैं अपने दिल पर हाथ रखकर कह सकता हूं कि अदालतों का काम आम भारतीयों के संघर्षों को दर्शाता है जो अपने दैनिक जीवन की कठिनाइयों से जूझ रहे हैं. सीजेआई ने कहा कि भारत के सुप्रीम कोर्ट में गांवों और महानगरों से वादियों की भीड़ आती है.
न्याय प्रणाली की ताकत, न्याय प्रदान करना
सीजेआई ने कहा-स्वतंत्रता दिवस वह दिन है जो हमें संविधान के सभी मूल्यों को साकार करने में एक-दूसरे और राष्ट्र के प्रति अपने कर्तव्यों का पालन करने की याद दिलाता है. सीजेआई कह चुके है कि न्याय प्रणाली की ताकत न्याय प्रदान करना है, किसी व्यक्ति की मनमाने ढंग से गिरफ्तारी, विघ्वंस की धमकी, संपत्तियों को अवैध रूप से कुर्क किया गया है, तो उन्हें सुप्रीम कोर्ट के जजों से सांत्वना मिलनी चाहिए. इससे पहले सीजेआई ने कहा था कि हमें न्याय देने की कोर्ट की क्षमता में विश्वास पैदा करना होगा. हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि हर एक व्यक्ति को इंसाफ मिले. हमें अदालत की बुनियादी ढांचे में सुधार की जरूरत है. सभी तीन अंग, न्यायपालिका, विधायिका और कार्यपालिका राष्ट्रीय निर्माण के लिए सामान्य कार्य में जुड़े हुए है.
सेक्युलर सिविल कोड होना चाहिए…
वहीं, पीएम मोदी ने सेक्युलर सिविल कोड का जिक्र किया. इस दौरान वहां मौजूद सीजेआई डीवाई चंद्रचूड मुस्करते हुए नजर आए. पीएम मोदी ने कहा कि देश में एक सेक्युलर सिविल कोड होना चाहिए, जिससे देश में धर्म के आधार पर जो भेदभाव हो रहे हैं, उससे निजात मिलेगा. पीएम मोदी ने यह भी कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने बार-बार यूसीसी पर चर्चा की है. अनेक बार आदेश दिए हैं. क्योंकि देश का एक बड़ा वर्ग मानता है और एक सच्चाई भी है कि जिस सिविल कोड को लेकर हम जी रहे हैं वह एक कम्युनल सिविल कोड है. दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने कई मौकों पर देश में समान नागरिक संहिता लागू करने की आवश्यकता को दोहराई है. करीब 74 साल पहले दिल्ली के संसद भवन में यूनिफॉर्म सिविल कोड को लेकर विचार विमर्श किया जा रहा था. यूसीसी को संविधान में शामिल किया जाए या नहीं. इसको लेकर 23 नवंबर 1948 को चर्चा हुई थी. लेकिन, कोई नतीजा नही निकला था.