बांग्लादेश में क्यों हो रहा आरक्षण आंदोलन? शेख हसीना को क्यों देना पड़ा इस्तीफा

ढाका: बांग्लादेश में नए सिरे से जारी हिंसा में नया मोड़ आ गया है। प्रधानमंत्री शेख हसीना ने सोमवार को इस्तीफा दे दिया है। प्रदर्शनकारियों ने प्रधानमंत्री आवास पर कब्जा जमा लिया है। कहा जा रहा है कि शेख हसीना ने बांग्लादेश छोड़ दिया है। देश के हालात पर सेना प्रमुख ने बयान जारी किया है। सेना प्रमुख ने प्रदर्शनकारियों से संयम बरतने की अपील की है।

हिंसक आन्दोलन में 300 से ज्यादा की मौत

इससे पहले रविवार को सरकारी नौकरियों में आरक्षण के मुद्दे शुरू हुआ विरोध प्रदर्शन एक बार फिर उग्र हो गया। इस हिंसक आंदोलन के चलते 300 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई। हिंसा को रोकने के लिए देश में मोबाइल इंटरनेट सेवाएं बंद कर दी गई, देश में कर्फ्यू लगा दिया गया। सरकार ने तीन दिन की सार्वजनिक छुट्टी घोषित कर दी। इन सब के बाद हालात काबू में नहीं आ सके। उधर संयुक्त राष्ट्र संगठन ने भी हिंसा पर चिंता जताते हुए इसे तत्काल रोकने की अपील की है।

पिछले महीने यहां की सुप्रीम कोर्ट ने सरकारी नौकरियों में आरक्षण की अधिकांश व्यवस्था को खत्म कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद उम्मीद जताई जा रही थी कि बांग्लादेश में विरोध प्रदर्शन खत्म हो जाएंगे, लेकिन एक बार फिर हिंसा की आग फैल गई।

बांग्लादेश में अभी क्या हो रहा है?

देश में जारी हिंसा के बीच सोमवार को प्रधानमंत्री शेख हसीना ने अपनी बहन के साथ ढाका छोड़कर चली गईं। उनके देश छोड़ने के बाद पद से इस्तीफे की अटकलें लग रही हैं। प्रदर्शनकारियों ने प्रधानमंत्री आवास पर कब्जा जमा लिया है। इससे पहले रविवार को देश भर में हुई हिंसा में करीब 100 लोग मारे गए और सैकड़ों घायल हो गए। पुलिस ने हजारों प्रदर्शनकारियों को तितर-बितर करने के लिए आंसू गैस और रबर की गोलियां चलाईं, जिसके चलते ये मौतें हुईं। रविवार को हुई मौतों की संख्या, जिसमें कम से कम 14 पुलिसकर्मी भी शामिल हैं।

यह आंकड़ा बांग्लादेश के हाल के इतिहास में किसी भी विरोध प्रदर्शन में एक दिन में सबसे अधिक है। इससे पहले 19 जुलाई को 67 लोगों की मौत हुई थी। उत्तर-पश्चिमी शहर सिराजगंज के इनायतपुर थाने पर हुए हमले में 13 पुलिसकर्मी मारे गये। बताया गया कि रविवार की दोपहर कुछ लोगों ने थाने पर आकर हमला कर दिया। कुछ जगहों पर सत्ताधारी पार्टी अवामी लीग के कार्यकर्ताओं और प्रदर्शनकारी छात्रों के बीच झड़प भी हुई है। कुछ जगहों पर अवामी लीग के कार्यकर्ताओं और नेताओं की मौत भी हुई है।

रविवार शाम से पूरे देश में कर्फ्यू लगा दिया गया, रेलवे ने अपनी सेवाएं निलंबित कर दीं और देश का वस्त्र उद्योग बंद कर दिया गया। सरकार ने रविवार को शाम छह बजे से अनिश्चितकालीन राष्ट्रव्यापी कर्फ्यू की घोषणा की और सोमवार से तीन दिन की सार्वजनिक छुट्टी की भी घोषणा की।

मोबाइल ऑपरेटरों ने बताया कि हाल ही में हुए विरोध प्रदर्शनों के दौरान दूसरी बार सरकार ने हाई-स्पीड इंटरनेट सेवाएं बंद कर दी हैं। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म फेसबुक और व्हाट्सएप भी ब्रॉडबैंड कनेक्शन के जरिए उपलब्ध नहीं हैं। जुलाई में छात्र समूहों द्वारा विरोध प्रदर्शन शुरू करने के बाद हुई हिंसा में 300 से ज्यादा लोग मारे गए और हजारों लोग घायल हुए हैं।

बांग्लादेश में कैसे शुरू हुई थी हिंसा?

कहानी 1971 से शुरू होती है। ये वो साल था जब मुक्ति संग्राम के बाद बांग्लादेश को पाकिस्तान से आजादी मिली। एक साल बाद 1972 में बांग्लादेश की सरकार ने स्वतंत्रता सेनानियों के वंशजों के लिए सरकारी नौकरियों में 30 फीसदी आरक्षण दे दिया। इसी आरक्षण के विरोध में इस वक्त बांग्लादेश में प्रदर्शन हो रहे हैं। यह विरोध जून महीने के अंत में शुरू हुआ था तब यह हिंसक नहीं था। हालांकि, मामला तब बढ़ गया जब इन विरोध प्रदर्शनों में हजारों लोग सड़क पर उतर आए। 15 जुलाई को ढाका विश्वविद्यालय में छात्रों की पुलिस और सत्तारूढ़ अवामी लीग समर्थित छात्र संगठन से झड़प हो गई। इस घटना में कम से कम 100 लोग घायल हो गए।

अगले दिन भी बांग्लादेश में हिंसा जारी रही और कम से कम छह लोग मारे गए। 16 और 17 जुलाई को भी और झड़पें हुईं और प्रमुख शहरों की सड़कों पर गश्त करने के लिए अर्धसैनिक बलों को तैनात किया गया। 18 जुलाई को कम से कम 19 और लोगों की मौत हो गई जबकि 19 जुलाई को 67 लोगों की जान चली गई। इस तरह से इस हिंसक आंदोलन के चलते अब तक 300 से ज्यादा लोगों की जान चली गई है।

आंदोलन अभी क्यों हो रहा है?

1972 से जारी इस आरक्षण व्यवस्था को 2018 में सरकार ने समाप्त कर दिया था। जून में उच्च न्यायालय ने सरकारी नौकरियों के लिए आरक्षण प्रणाली को फिर से बहाल कर दिया। कोर्ट ने आरक्षण की व्यवस्था को खत्म करने के फैसले को भी गैर कानूनी बताया था। कोर्ट के आदेश के बाद देश में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए। हालांकि, बांग्लादेश की शेख हसीना सरकार ने उच्च न्यायालय के फैसले को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी। सरकार की अपील के बाद सर्वोच्च अदालत ने उच्च न्यायालय के आदेश को निलंबित कर दिया और मामले की सुनवाई के लिए 7 अगस्त की तारीख तय कर दी।

मामले ने तूल और तब पकड़ लिया जब प्रधानमंत्री हसीना ने अदालती कार्यवाही का हवाला देते हुए प्रदर्शनकारियों की मांगों को पूरा करने से इनकार कर दिया। सरकार के इस कदम के चलते छात्रों ने अपना विरोध तेज कर दिया। प्रधानमंत्री ने प्रदर्शनकारियों को ‘रजाकार’ की संज्ञा दी। दरअसल, बांग्लादेश के संदर्भ में रजाकार उन्हें कहा जाता है जिन पर 1971 में देश के साथ विश्वासघात करके पाकिस्तानी सेना का साथ देने के आरोप लगा था।

बांग्लादेश की आरक्षण व्यवस्था क्या है जिस पर बवाल हो रहा है?

विरोध प्रदर्शनों के केंद्र में बांग्लादेश की आरक्षण व्यवस्था है। इस व्यवस्था के तहत स्वतंत्रता सेनानियों के परिजनों के लिए सरकारी नौकरियों में 30% आरक्षण का प्रावधान था। 1972 में शुरू की गई बांग्लादेश की आरक्षण व्यवस्था में तब से कई बदलाव हो चुके हैं। 2018 में जब इसे खत्म किया गया, तो अलग-अलग वर्गों के लिए 56% सरकारी नौकरियों में आरक्षण था। समय-समय पर हुए बदलावों के जरिए महिलाओं और पिछड़े जिलों के लोगों को 10-10 फीसदी आरक्षण की व्यवस्था की गई। इसी तरह पांच फीसदी आरक्षण धार्मिक अल्पसंख्यकों के लिए और एक फीसदी दिव्यांग कोटा दिया गया। हालांकि, हिंसक आंदोलन के बीच 21 जुलाई को बांग्लादेश के शीर्ष न्यायालय ने सरकारी नौकरियों में अधिकतर आरक्षण खत्म कर दिया।