भारतीय भाषाओं के लिए स्वर्णिम समय: प्रो. संजय द्विवेदी

विश्व हिंदी दिवस में बोले आईआईएमसी के पूर्व महानिदेशक-उपनिवेशवादी मानसिकता से मुक्ति जरूरी

जयपुर: विश्व हिन्दी दिवस के अवसर जयपुर से प्रकाशित मीडिया त्रैमासिक जर्नल ‘कम्युनिकेशन टुडे’ तथा दिल्ली के प्रतिष्ठित शैक्षणिक संस्थान भारती विद्यापीठ के संयुक्त तत्वावधान में ‘मीडिया में हिन्दी: समस्याएं और चुनौतियां’ विषय पर मीडिया लेक्चर सीरीज की 106वीं श्रृंखला आयोजित की गई।

चर्चा को प्रारंभ करते हुए भारतीय जनसंचार संस्थान, दिल्ली के पूर्व महानिदेशक व माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, भोपाल में प्रोफेसर (डॉ.) संजय द्विवेदी ने कहा कि हमें औपनिवेशिक मानसिकता से बाहर निकलकर हिंदी को प्रतिष्ठित करने की दिशा में आगे बढ़ना होगा। उन्होंने कहा कि हिन्दी प्रिंट मीडिया, सिनेमा, विज्ञापन, प्रसारण सहित मनोरंजन एवं राजनीतिक संचार की भी प्रभावी वैश्विक भाषा के रूप में उभरी है। उनका मानना था कि अंग्रेजी नौकरशाही की भाषा है। उन्होंने इस बात पर भी दुख प्रकट किया कि आजादी के 75 वर्षों के बाद भी न्याय की भाषा अंग्रेजी ही है। प्रो. द्विवेदी ने कहा कि हिंदी और भारतीय भाषाओं का यह स्वर्णिम समय है। इस समय को हम भारतीय भाषाओं की प्रतिष्ठा स्थापित करने में लगाएं।

लेखक, अनुवादक, स्तंभ लेखक एवं आलोचक डॉ दुर्गा प्रसाद अग्रवाल ने कहा आज हिंदी की स्वीकार्यता वैश्विक स्तर पर हो गई है यह देख एक संतोष की अनुभूति होती है उन्होंने कहा कि आज निजी अंतरराष्ट्रीय टीवी चैनल, रेडियो एवं ओटीटी प्लेटफार्म पर हिंदी के प्रचार प्रसार में अप्रत्याशित वृद्धि हुई है। इसके पीछे भले ही व्यावसायिक कारण हों लेकिन हिंदी की लोकप्रियता में निश्चित रूप में विस्तार हुआ है। उन्होंने इस बात पर दुख प्रकट किया कि ओटीटी प्लेटफॉर्म्स और एफएम रेडियो प्रसारणों में गली मोहल्ले और सड़कों की अभद्र भाषा को केंद्र पर लाने के प्रयास हो रहे हैं। उन्होंने समाचार पत्रों की भाषा में नए प्रयोगों पर संतोष जाहिर करते हुए अंग्रेजी के अनावश्यक प्रयोग से भाषा के बोझिल होने के खतरे की ओर संकेत किया।